ताज़ा हवा और रौशनी के लिए 
जब भी खोलता हूं
बंद और खाली पड़ी 
अपने कमरे की खिड़कियां
हवा और रौशनी के साथ
अंदर प्रवेश कर जाती हैं
जानी-अनजानी और भी कई-कई चीज़ें
दूर खिड़की के बाहर 
आसमान से लटके सफ़ेद बादल
सड़क के किनारे कब से खड़े 
उस विशाल पेड़ की शाखें व पत्तियां 
और अंधेरी रातों में
टिमटिमाते तारे भी
एक साथ प्रवेश कर जाना चाहते हैं
मेरे छोटे से कमरे में
और हमें पता भी नहीं होता
बाहर की यह थोड़ी सी कालिमा
थोड़ी सी उजास थोड़ी सी हरियाली
झूमती शाखों और पत्तियों का यह संगीत 
कब का बना लेते हैं मेरे लिए 
थोड़ी सी जगह इस तंग कमरे में
हम तो उनके बारे में तब जान पाते हैं 
जब कमरे में कई-कई रातें 
कई-कई दिन रहने के बाद 
अंततः वे जा रहे होते हैं 
छोड़ कर अपनी जगह...