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खाली झोली : भरी झोली / जय जीऊत

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आज का मानव
इतना दुखी
इतना परेशान क्यों है
इस प्रश्न को लेकर
मेरी पिछली कई-कई रातें
आंखों में कटीं ।
मेरी सतत-अनवरत माथापच्ची
अपने आप से मेरा जूझन
मेरे इस प्रश्न का
एक उपयुक्त उतर
देने में असमर्थ रहा ।
फिर समुद्र-किनारे बितायी गयी
वह ढलती सांझ
शान्त और एकान्त
ले आई मेरे प्रश्न का
एक सही-सटीक उतर-
आज का मानव दुखी है
लोगों के दुख से नहीं
दुखी है वह
दूसरों के सुख से ।
अपने पड़ोसी की झोलौ भरी-पूरी देख
वह अपनी झोली की रिक्तता के बिसार नहीं पाता
इसीलिए
दूसरों के भरेपन और अपने खालीपन से
दुखी है
परेशान है
आज का मानव ।