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खिले मुहब्बत के फूल लाखों नज़र तुम्हारी जिधर रही है / रंजना वर्मा

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खिले मुहब्बत के फूल लाखों नज़र तुम्हारी जिधर रही है।
तुम्हारी नज़रों से पाक़ उल्फ़त की रोशनी-सी बिखर रही है॥

तुम्हारी नजरों से जब मिली है हे प्राण प्यारे नज़र हमारी
कहा न जाये कि क्या हुआ है क्या आज दिल पर गुज़र रही है॥

खिला सुमन जब भी है चमन में लगा कि है वह हँसी तुम्हारी
हरिक कली पुष्प मंजरी में तुम्हारी सुषमा निखर रही है॥

तुम्हीं तो थे थाम हाथ मेरा जो चल पड़े अजनबी डगर पे
किया है हमने जहाँ भी जो भी सदा तुम्हारी नज़र रही है॥

कहीं कभी हो मिलन हमारा अभी भी है ये उमीद दिल में
कभी किसी मोड़ पर मिलेंगे ये आस दिल में सँवर रही है॥

हमारी यादें कभी अगरचे तुम्हारे दामन से जा के लिपटीं
यही कहेगा निपट ज़माना कि जून कोई सुधर रही है॥

ठहर गयी है कोई कहानी हमारी आँखों में ख़्वाब बनकर
नहीं हक़ीक़त ये बन सकेगी ये सोच मन में उभर रही है॥