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खिले हुए हैं नन्हें-नन्हें फूल हज़ारों पीले / विजेन्द्र

खिले हुए हैं नन्हें-नन्हें फूल हज़ारों पीले
धरती पर, जो सूखी है। नहीं देख पाता
उनको कोई। नाम नहीं है उनका। गाता
फिरता जिसको जग में। डंठल हैं जिनके नीले।

सड़क किनारे जहाँ कहीं भी बित्ते भर बची
हुई धरती उर्वर वहीं फूटते देखा है
उनको। पिचे पाँव से ऐसा ही लेखा है
बहुतों का। निर्जन में सन्नाटा धाँधली मची

हुई है ऐसी अन्दर जो रह-रह करती है
विचलित मुझको। उस नद्दी की मंद-मंथर गति है
जिसे सम्भाले आया हूँ सदियों से। यति है
कविता में निस्सीम, अतुल, व्यापक लय रचती है

रूपाकार अनेक सबल भावों के बल पर
हृदय में लिखा नाम है तेरा, मेरा जल पर।