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खिलौना / शंकरानंद
Kavita Kosh से
ग़ायब होते बचपन के बीच
मेले भी अब ग़ायब हो रहे हैं
मेले में भी अब कम दिखते हैं खिलौने
कम ही ख़रीदते हैं इसे बच्चे
अब इससे खेलने का युग बीत गया
अब वे प्लास्टिक कपड़े और मिट्टी के खिलौने
धीरे-धीरे इतिहास में शमिल हो रहे हैं
धीरे-धीरे उनके चित्र क़िताबों में छपने लगेंगे
सालों बाद बच्चे पूछेंगे कि
आखिर ये रंग-बिरंगी तस्वीर कैसी है
कौन सी चीज़ है यह
उन्हें बताया जाएगा कि इसे खिलौना कहते हैं ।