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खिल आती हो तुम / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
जंगल बोलता है चिड़िया
की ख़ामोशी
बोलता है
तुम्हारी चुप में सूनापन
मेरा जैसे
जंगल खिल आता है
फूल होने में
खिल आता हूँ मैं
तुम्हारे होने में जैसे
तुम्हें सूना करता हूँ
मैं
मुझ में खिल आती हो
तुम ।
—
14 जून 2009