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खुदा करे, मेरी क़सम का उसे ऐतवार हो / तारा सिंह
Kavita Kosh से
खुदा करे, मेरी कसम का उसे एतवार हो
मुहब्बत फ़िर न रुसवा1 सरे बाजार हो
आँख उसकी जब भी तरसे, जल्वा-ए-दीदार2 को
सामने उसका आजुर्दगी-ए-यार3 हो
छूट न जाए हाथों से गरेबां बहार का
मुहब्बते इंतजार का चढ़ा हुआ खुमार हो
मेरी जान को करार मिले न मिले, बू-ए-गुल से
मस्त, यार के कूचे का हर दरो-दीवार हो
है यही खुदा से दुआ मेरी, बागे-आलम में
समन्दे-उम्र4का लगाम,हाथ से न बे-इख्तियार हो
1. बदनाम 2. नज्जारा 3. उदास यार 4.उम्र का घोड़ा