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खुद्दारियां मिरी वो यूँ पल में गिरा न दे / ईश्वरदत्त अंजुम
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खुद्दारियां मिरी वो यूँ पल में गिरा न दे
खदशां है दिल में दर पे वो आके सदा न दे
हर कोई दे रहा है बहर गाम इक फ़रेब
डरता हूँ दिल में वो कहीं मुझको दग़ा न दे
मजबूर ज़ब्ते-हाल पर इतना न कर मुझे
दिल की घुटन कहीं मिरे दिल को जला न दे
आंखें मिरी तरसती रहे दीद के लिए
संगीन इस क़दर भी वो मुझको सज़ा न दे
सिहने-चमन में अब तो शिगुफ्ता है हर कली
शादाबए-चमन को कोई अब सदा न दे
नफ़रत की आग पहले ही भड़की है शहर में
कोई ख़ुदा के वास्ते उसको हवा न दे
लिखता हूँ तेरा नाम समंदर की रेत पर
डरता हूँ कोई लहर उसे आकर मिटा न दे
अंजुम यूँही बने रहे दिल प्यार मेहर के
मजबूरियां वो अपनी मुझे फिर गिना न दे।