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खुद कतरती हो जब तुम नयन से / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

खुद कतरती हो जब तुम नयन से।
फिर शिकायत हुई क्यों गगन से।।

प्यार में दूरियाँ भी सुहानी।
जी बहलता है फिर भी मगन से।।

याद आती तुम्हारी पुरानी।
मन रिझाते हैं खुद ही सपन से।।

बात तेरी हो या दिगर की।
तोड़ना मत दिलों को अपन से।।

तुम मुझे मत खिलौना समझना।
यूँ न फेंकोगे मुझको चमन से।।

आँख इनकी है इतनी नशीली।
बात करती है खुद ये पवन से।।