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खुशियों के जुगनू / कृष्णा वर्मा
Kavita Kosh से
1
कैसा सितम
किया आज वक़्त ने
फिरें ढूँढते
दिल की खुशियों की
हम सब वजह।
2
रोतीं चाहतें
दिलों के दरम्यान
कौन दे रहा
फासलों का पहरा
तड़पते किनारे।
3
कैसे बुझाए
खुशियों के जुगनू
उदासियों की
घिर आईं घटाएँ
मरे बाँसुरी सुर।
4
मन बंजारा
बेचैन भटकता
फिरे आवारा
खोजे तेरी प्रीत को
मिल जाए दोबारा।
5
जेठ की धूप
ठहरी जीवन में
देती आघात
ढूँढ रही ज़िंदगी
बरगद की छाँव।
6
लगी माँगने
मुसकानों का कर्ज़
क्यों ज़िंदगानी
छीन कर वसंत
क्यों दे गई वीरानी।