खुशियों में किसी की कभी शामिल नहीं रहा
ये दिल किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा
भटका किया सहरा में ज़माने के हमेशा
खुद बन के रहा रास्ता मंजिल नहीं रहा
जिस ओर बढ़ा जा रहा था अपना सफ़ीना
मौजों के सिलसिले रहे साहिल नहीं रहा
थी चाह जबरदस्त तभी तो गुलाब का
खारों तले खिलना कभी मुश्किल नहीं रहा
यूँ तो रहे - हयात थी काँटों की रहगुज़र
थी जान लुटी कुछ भी तो हासिल नहीं रहा
साथी नहीं है फिर भी जिये जा रहा है वो
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नही रहा
कर के गुनाहे इश्क़ भी इतरा रहा है जो
अंजाम से अपने कभी ग़ाफ़िल नहीं रहा