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खुशी से हो गया क़ुर्बान दिल उस पर घड़ी भर में / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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खुशी से हो गया क़ुर्बान दिल उस पर घड़ी भर में
ये कैसी दिलकशी कैसी कशिश है उस सितमगर में
अजब क्या ग़र्क़ हो जाये सफ़ीना जौरे आलम का
कि तूफ़ाने-बला पिंहाँ है मेरे दीदए-तर में
मेरे नज़दीक क़ैसो-कोहकन हैं तिफ्ल मकतब के
वो वहशत है मेरे दिल में वो सौदा है मेरे सर में
तुझे ऐ कातिबे तक़दीर मुझसे दुश्मनी क्या है
ज़माने भर का ग़म क्यों लिख दिया मेरे मुक़द्दर में
अजल दर पेश है ज़ालिम खुली हैं दीद को आंखें
तू काश ऐसे में भूले से ही आ निकले मेरे घर में
दिले-बेताब का ज़ौके शहादत तो कोई देखे
नहीं खंज़र मेरे दिल में ये मेरा दिल है खंज़र में
हमारा दिल तो था तारीक़ ऐ अंजान सदियों से
ये किसकी याद आई जगमगा उठा घड़ी भर में।