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खु़शबू चमन में अपनी वो दौलत लुटा गई / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

खु़शबू चमन में अपनी वह दौलत लुटा गई।
मोमिन को एक रात में काफ़िर बना गई।

उस पर असर हुआ न मेरी चीख़ का कोई,
हर चीख आसमान में जाकर समा गई।

सुनकर ख़बर तलाक की ये सोचना पड़ा,
पहले वरक़ पर इश्क़ के वह लिख दग़ा गई।

क्या दर्द बेशुमार गरीबों में बाँट कर,
सरकार की दुकान मुनाफे़ में आ गई।

मंजर वह दर्दनाक अभी दिल में क़ैद है,
जब जान मेरे दोस्त की ख़ाकर दवा गई।

हर जंग जीत कर भी वह बैठा न तख्त पर,
तद्बीर उसकी मात, मुक़द्दर से खा गई।

सबको पता बखूब था ‘विश्वास’ होगा क्या,
चिड़िया तेरी गुलेल की गर जद में आ गई।