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खेत की पकती फ़सल घर आती आती रह गई / महेश कटारे सुगम
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खेत की पकती फ़सल घर आती-आती रह गई ।
रोटियों की लोरियाँ अम्मा सुनाती रह गई ।।
हाथ में पुस्तक पकड़नी थी पकड़ ली मुफ़लिसी,
बेबसी में ज़िन्दगी बस कसमसाती रह गई ।
कोई न निकला मुहूरत न कोई शादी हुई,
साध मेरी हाथ में मेंहदी रचाती रह गई ।
मंज़िलों के रेशमी दामन पकड़ न आ सके
ज़िन्दगी जश्नों के मंसूबे बनाती रह गई ।
थी ख़बर ख़ुशहालियों का दौर आएगा सुगम
राह तकती आँख बस आँसू बहाती रह गई ।
09-02-2015