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खेत छिने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
नामी या बेनाम सड़क पर
होते सारे काम सड़क पर
जब देश लूटता राजा
कोई करे
कहाँ शिकायत ,
संसद में बैठे दागी
एकजुट हो
करें हिमायत ;
बेहयाई नहीं टूटती ,
रोज़ उठें तूफ़ान सड़क पर ।
दूरदर्शनी बने हुए
इस दौर के
भोण्डे तुक्कड़,
सरस्वती के सब बेटे
हैं घूमते
बनकर फक्कड़ ;
अपमान का गरल पी रहा
ग़ालिब का दीवान सड़क पर ।
खेत छिने , खलिहान लुटे
बिका घर भी
कंगाल हुए ,
रोटी , कपड़ा , मन का चैन
लूटें बाज़ ,
बदहाल हुए ;
फ़सलों पर बन रहे भवन
किसान लहूलुहान सड़क पर ।
मैली चादर रिश्तों की
धुलती नहीं
सूखा पानी,
दम घुटकर विश्वास मरा
कसम-सूली
चढ़ी जवानी;
उम्र बीतने पर दिया है
प्यार का इम्तिहान सड़क पर ।
-0-[ 15-02-2011 अभिव्यक्ति-नवगीत की पाठशाला]