भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेलत रहलों बाबा चौवरिया / धरमदास
Kavita Kosh से
खेलत रहलों बाबा चौवरिया आइ गये अनहार हो
राँध परोसिन भेंटहूँ न पायों डोलिया फँदाये लिये जात हो ।। 1।।
डोलिया से उतरो उत्तर दिसि धनि नैहर लागल आग हो
सब्दै छावल साहेब नगरिया जहवाँ लिआये लिये जात हो ।। 2।।
भादो नदिया अगम बहै सजनी सूझै वार न पार हो
अबकी बेर साहेब पार उतारो फिर न आइब संसार हो ।। 3।।
डोलिया से उतरो साहेब घर सजनी बैठो घूंघट टार हो
कहैं कबीर सुनो धर्म दासा पाये पुरुष पुरान हो ।। 4।।