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खेल-खेल में / अब्दुल बिस्मिल्लाह
Kavita Kosh से
हाँ, ऐसा होता है
खेल-खेल में
रोज़ ही ऐसा होता है
रोज़ ही वे
दरोगा बनते हैं
रोज़ ही वे
सिपाही बनते हैं
रोज़ ही तुम
चोर बनते हो
रोज़ ही वे
कन्हैया बनते हैं
रोज़ ही तुम
पालकी बनते हो
रोज़ ही वे
राजा बनते हैं
रोज़ ही तुम
रैयत बनते हो
हाँ, ऐसा रोज़ ही होता है
रोज़ ही उनका गुड्डा होता है
रोज़ ही तुम्हारी गुड़िया होती है
रोज़ ही वे
अपना गुड्डा सजाये आते हैं
और तुम्हारी
सुघर-सलोनी गुड़िया ले जाते हैं
हाँ, ऐसा रोज़ ही होता है
कि उनका गटापार्चा का बबुआ टूटता है
और वे चले जाते हैं
रोनी सूरत बनाए
तब तुम उनके बबुआ को
दफ़न करते हो
और तालियाँ बजाते हो
खेल-खेल में
ऐसा तो रोज़ ही होता है