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खेल / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मुर्गे के पैर में उन्होंने बांध दी हैं अदॄश्य छूरियाँ
मुर्गे लड़ते हैं
होते रहते हैं रक्तरंजित
वे प्रसन्न होकर पीटते हैं तालियाँ
वे चाहते हैं
ऎसे आदमी लड़े हो रक्तरंजित
वे चीज़ों को कौतुक में बदलना जानते हैं
उन्होंने बनाया है बहुत बड़ा खेल का मैदान
जिस पर करते हैं रक्तरंजित खेल
रक्त में उन्हें साफ़ दिखाई देता है अपना चेहरा
ऎसे खेल से पैदा होते हैं आदमख़ोर
वे करते हैं मनुष्य का शिकार
वे दुनिया को एक जंगल में बदल देते हैं