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खोज अर्थात वास्कोडिगामा / विपिन चौधरी

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महज काली मिर्च की खुशबू ही
एक लम्बी भटकन का कारण नहीं हो सकती
किसी गहरी टीस के मातहत ही
जोखिम उठाने का सामान बंधता है
जब कोई दो चार काम की चीजें बगल में बाँध कर
अनजानी राह पर अकेला चल निकलता है तो
एक राह खुद उठ कर दूसरी राह का दामन थाम लेती है
बिना किसी नैन-नक्श के सिरे के बल पर
मिट्टी, जल और जमीन पर निशान बनाता हुआ
कच्ची पगडंडियाँ उकेरता-खोजता-बनाता हुआ
एक सिरफिरे को पुर्तगाल में वास्कोडिगामा और
भारत में दशरथ माझी का नाम दिया जाता है
इधर एक हम रहे
जिन्हें सुई तक खोजना भारी पड़ा
एकांत का आडम्बरहीन सुख हमें कुछ खोजने से रोकता रहा
इन दो पांवों ने हमें
खुद से कभी दूर नहीं होने दिया
एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब हम
अपने करीब आये हों और फिर अपने से उलट कभी दूर गए हों
हम कबीर की उस राह के ज्यादा नजदीक थे जो
सीधे मन से हो कर गुजरती थी
उस पर भी एक प्रेम ने जीते-जी कई मुश्किलें पैदा कर दीं
जहाँ की एक राह छोड़ कर बाकी सभी राहें बंद हो गयी थीं हमारे लिए,
हमारा बागी भी इसी इकलौती राह में धूनी रमाता चला गया
हाल यह है कि हमारा नाता केवल हमीं से रहा
'एकला चलो' का सटीक ज्ञान अपने भीतर
उतारने वाले अकेले तुम्हीं निकले
वास्कोडिगामा
जब तुमने एक लंबी-गहरी सांस ले,
दूरियों को पांवों से नापने का प्रण लिया
तब प्रार्थनाओं की कंपकंपाती लौ और
कब्रिस्तान का नीरव आशीर्वाद तुम्हारी पेटी से सिमट गया
धुआंधार नाविक और कलाबाज़ खिलाड़ी
समुन्द्र के बड़े-बड़े पत्थरों से टकरा कर अपनी राह भटकते रहे
पर तुमने व्यापार के नाम पर लगभग-लगभग
कई नदी, नाले और टीले पार किये
और एक दिन आ पहुंचे मछुआरों, नटों की अजातशत्रु धरती के पश्चिमी तट पर
तब इस चौरस भूखंड ने पहली बार भारत के नाम से गर्भ-धारण किया
अपनी नयी पहचान पर ऊँची अंगड़ाई ली
इसी सुगबुगी गंध की तो तुम्हें तलाश थी
जो पसीने से हमेशा तर रहती हो,
और जिसकी आँखों में हमेशा नमी बनी रहती हो,
जिसका सीमित विस्तार चारों दिशाओं में फैला हो
तुमने इस देश की खुशबूदार सुबह, मसालेदार शाम और सौंधी रातों से
संसार भर में परिचय करवाया,
यह तुम्हारी मेहरबानी ही थी कि
हम जैसे घोर आलसी जीवों को बैठे-बिठाये
अपने पांवों के नीचे एक ठोस जमीन मिल गई