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खोरना / भाग 3 / भुवनेश्वर सिंह भुवन

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लाखों बक्सा वोट के पैहन्हैं,
भरल्हो, करल्हो सील।
तोरोॅ नाटक वोटर देखै,
हिरदै बेधै कील॥

जम-गोली-शराब के नेता,
तब तक तोहरोॅ शान।
तोहरा से ताकतबर ऐतै,
ढहथौं तोरोॅ गुमान॥

ताकत के पशुता-निर्दयता,
जस दुभरी पर ओस।
जन-उभार तूफानी हैथैं,
तुरत उड़ाबै होश॥

हारला नटुवां झिटकी चुनै;
दर-दर ठोकर खाय।
सब रस्ता पर घृणा बिछैलोॅ,
जाय तेॅ कन्नें जाय॥

सुतलां में सपनाबै बाबू,
बुक्का फारी चिल्लाय।
आपनों पतन सन्निकट देखै,
अन्तोॅ सें घबराय॥

एक बेर गद्दी मिलला पर,
मोॅन-समुद्र उधियाय।
घटतें-घटतें नै घटै,
सोना के जुत्ता खाय॥

दिन भर चिन्ता, रात केॅ कानै,
नीनोॅ सें उठै चेहाय।
मीत केॅ धोखाबाज कहै,
हरदम सबकेॅ गरियाय॥

कुर्सी-च्युत नेता उमताहा,
कुत्ता रंग बौवाय।
अब तक नै बनलै हुनका
काटला के कोय दबाय॥

बाबू के स्वागत में दल
बदलू के लगै कतार।
आगू-पीछू चोर लुटेरा,
लगबै आपनों कार॥

तिनकौड़ी बनि जाय हजारी,
गुपचुप राते-रात।
हड्डी बचै नै शेष,
जखनी काल लगाबै लात॥

अनाचार के बल पर मूरख,
नै है छै विद्वान।
वोकरोॅ सकल सम्पदा गोबर,
जेकरा नै ईमान॥

पिस्टल-नोक पेॅ टीकट लेलकै,
घमकाय-फुसलाय वोट।
जहिना बाबू नेता बनलै।
दीयेॅ लागलै चोट॥

जै जाति के राज बनैलकै,
वहीं घीचै गोर।
बाबू केॅ एके दुख सतवै,
घरबैये छै चोर॥

हुनी कहै छै जेकरा चुनोॅ,
हुवेॅ बिहारी जात।
बड़का भाय के नांव नै बोलोॅ,
ऊ भेॅ गेलै अजात॥

कोनो पता रहै नै केकढ़ौ
कन्नें लेतै उठाय।
कतना लेतै फिरौत्ी,
कहाँ जाय देतै कुटियाय॥

शंका सें पत्ता सन कांपै,
जय गणेश, जय-जय हनुमान।
तैयो डाकू पिंड नै छोड़ै
वहू पूजै छै भगवान॥

बाबू राज में अपहर्ता सें,
लेॅ सीधे बतियाय।
पुलिस पचैती करै कमीसन
दोन्हौं दिस सें खाय॥

दिन में लोग कमाबै छलै,
रात होय छलै डाका।
आबेॅ दिन भर हत्या-डाका,
कन्नें जैभेॅ काका॥

कोनो जगह सुरक्षित नै छै,
कखनी कहां कमैभेॅ।
की राखभेॅ डाकू के हिस्सा,
की पिन्हभेॅ की खैभेॅ॥

सरकारी पाटी केनेता,
बिन पूजा नै घामथौं।
पुलिस जों नाखुश रहथौं तेॅ,
घोॅर ढुकी केॅ धुनथौं॥

नेता बाबू, भैया बाबू,
दलबदलू के कन्हैया बाबू।
नोॅ बुतरू के बाप दुलरुवा,
नसबन्दी करबैया बाबू॥

गांव-नगर आगिन छिरियाबोॅ,
दुखी बिहार के सैयां बाबू।
आपनों दुख बोलै वाला केॅ,
मटियामेट करैया बाबू॥

आपनें इन्द्रासन-सुख भोगोॅ,
दोसरा लेली कैयां बाबू।
आपना दल के भांगलोॅ नैया,
मजधारोॅ में डुबैया बाबू॥

सुखलोॅ पता सिसकी मिलथैं,
दिशा-हीन जस बहकै।
मुखमंत्री बनथैं बिहार के
बाबू वही नांय सहकै॥

घूमी-घूमी गांव-शहर में,
विष-विद्वेष जगाबै।
प्रेम-भैयारी के बगिया में,
धिरना-आग लगाबै॥

दलदल जखनी हाथी निङलै,
चाढू़ दिस सें भभकै।
जखनी दीया बुतबेॅ लागै,
अंतिम बल सें धधकै॥

गुनी पिता के चरन चिन्ह पेॅ
लायक बेटा गेलै।
दाबेदार इन्द्र-वैभव के,
मूर्ख अकेला भेलै॥

भूमफोड़ आकाशतोड़ सें,
डोलै हुनकोॅ आसन।
कुर्सी एक सहसदस दाबा,
केना केॅ चलतै शासन॥

गोरोॅ तर में खद्धा खान्है,
बाहर करै बड़ाय।
जरियो टा संदेह बचै तेॅ,
बाबू किरिया खाय॥

जब मूरख राजा बने,
सेनापति बनै कसाय।
मंत्री अनधुन धोॅन बटौरै,
प्रजा केॅ जित्ते खाय॥

राजा दल के हाकिम लबरा,
मांगलोॅ ढोल बजाय।
जनता केॅ दिग्भ्रमित करै,
जातोॅ के जहर पिलाय॥

कुछ तेजस्वी दल के नेता,
बानर मोह ग्रसित छै।
कुछ के नजर सिर्फ कुर्सी पर,
कुछ नासमझ पतित छै॥

कुर्सी-खेल में हारलोॅ नेता,
खोजै कन्हौं मौका।
बना श्राद्ध के पता लगाबै,
भिखमंगा भोजखौका॥

त्याग-तपस्या के सब दुश्मन,
फेकै सगरे पासा।
ज्ञान-विज्ञान एक नै बूझै,
दै छै सब केॅ झांसा॥

धोखा कला विशारद के,
विश्वास पेॅ जे सरकार।
ढहतै जेना महल तास के,
बालू के दीवार॥

जें मूरख केॅ राजा बनबै,
ऊ सब सें होशियार।
राजा के कान्हा पर राखी
के चलबै हथियार॥

चुनी-चुनी राजा के साथी,
विश्वासी केॅ मारै।
राज-भक्त परजा केॅ लूटै,
वोकरोॅ घोॅर उजारै॥

सेनापति के पुत्र सें जोड़ै,
वैवाहिक सम्बन्ध।
अंत दुखद वैहना राजा के,
जे मन्द-बुद्धि मद-अंध॥

जें भाड़ा पर बुद्धि लॅे केॅ,
छै चलबै सरकार।
वै शासन में बुद्धिमान रोॅ,
चेला के भरमार॥

बुद्धिमान के सबटा चेला,
उछृंखल उत्पाती,
घूमै निपट निरंकुश सगरे,
करै काम जनघाती॥

असमंजस में लोगें पूछै,
के असली मलकार?
बुमिान? की हुनकोॅ चेला?
की खूनी बटमार?

उठथैं भोरे कोय पुकारे,
सीता-सीता राम।
दोसरें वंशीधर रटै।
हरदम राधेश्याम॥

पूजा करतें जनम गुजरलै
दुख दारिद नै कमलै।
राम बेचारा वन-वन भटकै,
कृष्ण द्वारिका रहलै॥

जें करतै उद्धार पतित के,
वोकरे पूजा करबै।
चाहे दुयिां शूली चढ़बेॅ
नेता बाबू रटबै॥

कुछ नेता जे सबसेेेेेेेेेेेेेेेेेेें चालू,
करै झूठ व्यापार।
जे दुनियां में सबसें छटलोॅ,
बनबै वोकरा यार॥

पूस-माघ के जाड़ा में
झाड़ै कुर्ता मलमल के।
कमरा बन्द करी केॅ तोड़ै,
नया शील बोतल के॥

झूठ-महल के सौदागर के,
बचै न रोवनहार।
जना एक पापी के चलतें,
डूबै नाव मजधार॥

जखनी बनबै मंत्री बाबू,
बाजा बैंड बजाय।
बगुल पंख रंग धोती-कुर्ता,
बंडी कोट पिन्हाय॥

सम्मेलन-भाषण-उद्घाटन,
में जिनगी मसताय।
भोज-पात के चलै सिलसिला,
मन-मयूर उमताय॥

इन्द्रासन अशान्त अचानक,
औचक प्राण कपाय।
तखनी इन्द्र निरंकुश अपना,
मंत्री के बली चढ़ाय॥

नारा सामाजिक न्याय के,
नया किस्म के धोखा।
पानी बिना बियाकुल धरती,
कहां बरसलै बरखा॥

कहै नौकरी में आरक्षण,
करै बहाली बन्द।
स्वाद में लागै हरकट तिप्त्तोॅ,
सुनै में मिसरीकन्द॥