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खो दे ज्यान कऐ मैं पड़कै के चारो ओड़ रहे ना / मेहर सिंह

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वार्ता- सखियां राजकुमारी को बहुत समझाती हैं और उसे बताती हैं कि ये मर्द बड़े बेदर्द होते हैं ये किसे के नहीं होते। समय आने पर ये धोखा दे जाते हैं। राजकुमारी को समझाती हैं और क्या कहती हैं-

हे पदमावत तेरे नाम के कुऐ जोहड़ रहे ना।
खो दे ज्यान कऐ मैं पड़कै के चारो ओड़ रहे ना।टेक

इतनी अग्नि ना चाहिए थी जो लाग रही याणी कै
अकल का तेरै खोज नहीं सै कोड़ बड़ी स्याणी कै
पिता नै कह कै ब्याह करवा ले के देश भरा पाणी कै
माता पिता का ख्याल नहीं तेरै इसी ऊत जाणी कै
के तेरे नाम के इस दुनियां मैं बांधणियां मोड़ रहे ना।

मात पिता के सिर मैं मारै इसी जूती थारै
मर्द मार कै सती बाणो इसी नपुती थारै
हाथां लाओ पायां बुझाओ इसी कसूती थारै
अम्बर कै म्हां लाओ थेंगली इतनी दूती थारै
थारे राज लुकमा छिपामा खावणियां कोड़ रहे ना।

छोटे बड़े दिल कै म्हां ख्याल भी रह्या करै सै
गिणतैं गिणतै मन कै म्हां किमै छाल भी रह्या करै सै
पटका और कटार साथ मैं रूमाल भी रह्या करै सै
प्यारां की हौ सै पर लाल भी रह्या करै सै
जै लाल भी धोरै ना होतै किमत नौ करोड़ रहे ना।

भरे समन्दर चौगरदे नै के जोहड़ और लेट करैं सैं
धन माया के जहाज जगत मैं ये तरते सेठ फिरैं सैं
ज्ञान बिना रैह पशु बराबर भरते पेट फिरैं सै
छाप काट कै लालची लोभी करते ढेठ फिरैं सैं
कह मेहर सिंह लखमीचन्द केसै ब्राहमण गोड़ रहे ना।