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ख्वाबों के दरीचे से न अब रूप दिखाओ / रमेश 'कँवल'

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ख़्वाबों के दरीचों से न अब रूप दिखाओ
आओ मेरी आग़ोशे1- मुहब्बत को सजाओ

फागुन के महीने में तमन्नाओं के मेले
फिर ग़म कदा-ए-दिल2 में लगे हैं चले आओ

मुस्तक़बिले- ज़र्रीं3 के ख़दो-ख़ाल4 संवारो
इमरोज़ को माज़ी का न आइना दिखाओ

मैं कलियों के होटों पे हूं बिखरी हुर्इ शबनम
ऐ वक़्त की किरनो, मेरा दामन न जलाओ

ऐसान हो मैं बेच दूं हाथों में हविस के
आ जाओ सनम अपनी अमानत को बचाओ।

मैं आंखे बिछाये हुये रस्ते में खड़ा हूं
ऐ गुल बदनो, मुझ से यूं कतरा के न जाओ

हर हंसते हुये फूल के चेहरे पे लिखा है
देखो मुझे, लेकिन मेरे नज़दीक न आओ

ज़ख़्मों के चमन ज़ार5 सजे हैं मेरे दिल में
ऐ देखने वालो मेरी सूरत पे न जाओ

हर चेहरा है इक काग़ज़ी गुलदान की सूरत
बेहतर है 'कंवल’ तुम न इसे हाथ लगाओ


1. गोद 2. दुखभरेदिलकाघर 3. सुनहराभविष्य 4. नाक-नक्शा
5. वाटिका