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ख्वाब आँखों में जब बसते हैं / शेष धर तिवारी

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ख्वाब आँखों में जब बसते हैं
आँसू भी हंसने लगते हैं

जिंदा रहने की कोशिश में
हम जाने कितना मरते हैं
 
दुनिया रहने क़े नाकाबिल
फिर भी तजने से डरते हैं
 
फ़र्ज़ निभाना कितना मुश्किल
इक दूजे का मुह तकते हैं
 
उसने तो इंसान बनाया
हिन्दू मुस्लिम हम बनते हैं
 
मिट्टी क़े घर होते जिनके
उनके घर ईश्वर बसते हैं