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ख्वाब में वो ज़रा आ गए हैं / शोभना 'श्याम'
Kavita Kosh से
ख़्वाब में वह ज़रा आ गए हैं
शब को कैसे गुमाँ हो रहे हैं
छू लिया है नज़र से ज़रा-सा
आप यूं ही ख़फ़ा हो रहे हैं
क्यों भटकता फिरे दर बदर तू
लौट आ अब दिए जल गए हैं
ए धनक आ उफ़क़ से उतर आ
रंग मुझसे जुदा हो चुके हैं।
ओ सितमगर नए ज़ख़्म दे जा
जो पुराने थे वह भर चुके है।
जिसका खाएँ, गिराएँ उसी को
लोग यूं बेहया हो चले हैं।
देख ले ख़ुद ही आ के खुदा अब
नाम पर जो तेरे बलबले हैं।
यूं ही पाई नहीं मंजिले ये
श्याम ये पाँव मीलो चले है।