भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंगाक धार सन लहराइत / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
मीता
आइ नहि छी हमरा लग
तइयो बतास चलइए
देहकें सिहकाबइए
लगइए
अहीं चुम्बन कयल अछि हमरा।
पातक खरखरायब
कहइए
अहींक आगमन
सोलह सिंगार कऽ
बिहुरी गिरयबा लेल।
भकजोगनीक झनझनायब
कहइए
अहींक पायलक रुन-झुन।
गंगाक धार देखि
लगइए
अहींक आँचर लहराइए
एहिना अनुभव करैत रही
सभ दिन
ई कम बात नहि भेलै।