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गंगा-3 (विराट परछाईं) / कुमार प्रशांत

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अथाह जलराशि
बून्दों में समाई है!
क्षण भर के इस अस्तित्व में
कैसा विराट
वामन बना डूबता उतराता है.

वह सब जो विराट है
क्षण-पल-बून्द-बिन्दु का ही तो अभिलाषी है
क्योंकि अस्तित्व तो बीज में है
विराटता तो उसकी परछाईं है