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गंगा की गाय / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
शरद की गंगा
पलटती राँस
करती खेल
जल की उलटवाँसी
बहुत वर्षों बाद
देखी कानपुर में सूँस
ओ पेंगुइन की बुआ
डोल्फिन की चाची
गंगा जी की गाय
जब तक हाथी-डुब्बा पानी
बनी रहो ना कानपूर में
जब आये संक्रान्ति
चली जाना फिर गंगासागर
उलटवाँसी के पलटती अर्थ
अब फिर कब मिलोगी
गाय गंगा की!