गंगा जमुन की बालू रते में मलिया ने बाग लगाये / बुन्देली
गंगा जमुन की बालू रते में मलिया ने बाग लगाये, रसवारी के भौंरा रे।
बागा दुबीचे अम्बा कौ पेड़ों बई से गादर आम हो, रसवारी के भौंरा रे।
ऊपर से गिरे हैं दो अम्बा चोली में लग गये दाग। रसवारी...
पाँच रूपैया तोय देऊँ देवरा नगरी में धुबिया बसाओ रसवारी...
काना फीछूँ काना पछाडूँ काना सूखन डारूँ, रसवारी के...
गंगा फीछों जमुना पछज्ञड़ौ पट्टी पैसूखन डालौं, रसवारी के...
उतै से आये दो मुसाफिर जा चोली की बनक बनी है, रसवारी के...
जा चोली की अजब बनक सो गोरी धन कौन सरूप, रसवारी के...
पाँच रूपयौ मैं तुम्हें दऊँ धुबिया गोरी धन कौ महल बताओ, रसवारी के...
ऊँची अटरिया चंदन किरिया सूरज सामें द्वार
बोई गोरी धन कौ महल, रसवारी के...
गोरी धन हम कों मुखई बताओ आये हैं सिपहिया, रसवारी के...
तोसे सिपहिया मैंने भौतक देखे मोरे लगे हरवारे, रसवारी के...
तोसी गोरी धन मैंने भौतक देखी मोरे लगीं गुबरारीं, रसवारी के...
तोसे सिपहिया मैंने भौतक देखे मोरे लगे पनहारे, रसवारी के...
तोसी गोरी धन मैंने भौतिक देखी मोरे लगीं पिसनारी, रसवारी के...
गये मुसाफिर पलट घर आये मलिया ने बाग लगाये, रसवारी के...