गंगा तेरा पानी अमृत / साहिर लुधियानवी
गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाए
युग-युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए
गंगा तेरा पानी...
दूर हिमालय से तू आई गीत सुहाने गाती
बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत सुख-संदेश सुनाती
तेरी चाँदी जैसी धारा मीलों तक लहराए
गंगा तेरा पानी...
कितने सूरज उभरे-डूबे गंगा तेरे द्वारे
युगों-युगों की कथा सुनाएँ तेरे बहते धारे
तुझको छोड़ के भारत का इतिहास लिखा न जाए
गंगा तेरा पानी...
इस धरती का दुख-सुख तूने अपने बीच समोया
जब-जब देश ग़ुलाम हुआ है तेरा पानी रोया
जब-जब हम आज़ाद हुए हैं तेरे तट मुस्काए
गंगा तेरा पानी...
खेतों-खेतों तुझसे जागी धरती पर हरियाली
फ़सलें तेरा राग अलापें झूमे बाली-बाली
तेरा पानी पी कर मिट्टी सोने में ढल जाए
गंगा तेरा पानी ...
तेरे दान की दौलत ऊँचे खलिहानों में ढलती
ख़ुशियों के मेले लगते मेहनत की डाली फलती
लहक-लहक कर धूम मचाते तेरी गोद में जाए
गंगा तेरा पानी ...