भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंधर्व-ताल / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
- लछिमा का गीत
- छितवन की,
छितवन की ओट तलैया रे,
- छितवन की!
जल नील-नवल,
शीतल, निर्मल,
जल-तल पर सोन चिरैया रै,
- छितवन की,
छितवन की ओट तलैया रे,
- छितवन की!
सित-रक्त कमल
झलमल-झलमल
दल पर मोती चमकैया रे,
- छितवन की,
छितवन की ओट तलैया रे,
- छितवन की!
दर्पण इनमें,
बिंबित जिनमें
रवि-शि-कर गगन-तरैया रे,
- छितवन की,
छितवन की ओट तलैया रे,
- छितवन की!
- जल में हलचर,
- कलकल, छलछल
झंकृत कंगन
झंकृत पायल,
पहुँचे जल-खेल-खेलैया रे,
- छितवन की,
छितवन की ओट तलैया रे,
- छितवन की!
- साँवर, मुझको
- भी जाने दे
पोखर में कूद
नहाने दे;
लूँ तेरी सात बलैया रे,
- छितवन की,
छितवन की ओट तलैया रे,
- छितवन की!