भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गंधारी का दूध लजा दिया, चिनी चिनाई ढहादी / प.रघुनाथ
Kavita Kosh से
गन्धारी का दूध लजा दिया, चिनी चिनाई ढहादी,
सिंहणी के गीदड़ होगे, हया शर्म की पैड़ मिटादी ।।टेक।।
वक्त के ऊपर साथ दिया करे, सगा भाई भाई ने।
सभी तारणी चाहें मुँह की, लगी हुई स्याही ने।।
एक नाचीज लुगाई ने, मेरी फूटी आँख बतादी।।1।।
कदी जोक ना लगती देखी, एक पत्थर की सिल में।
गाना और नाचना द्रोपदी, नगन करे महफिल में।।
जो कुछ थी मेरे दिल में, वो हर ने आज बनादी।।2।।
इतना है अभिमान उसे, मेरा हलकारा धमकाया।
तुम सौ भाई जिन्दा जग में, मेरा नार ने मान घटाया।।
क्रोध में गर्म हुई काया, जणे फूंस में आग लगादी।।3।।
जीना है बेकार थारा, तुम डूब मरो बिन पानी।
तुम कायर और कमीन हुए, है मात तुम्हारी क्षत्राणी।।
रघुनाथ बात जब जानी, कथ कथा में कली मिलादी।।4।।