भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गजल एक बम / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
Kavita Kosh से
शान्ति है आज कम हो गयी।
ज्योति है मन्दतम हो गयी।
दृष्टियाँ पत्थरों की निरख
दैन्य की आँख नम हो गयी।
हौसले पस्त श्रम के हुए,
पूजियाँ बेरहम हो गयी।
नाम लेकर तुम्हारा मधुर
धृष्ट जिहुआ परम हो गयी
सत्य शिव में रमी जिन्दगी
सुन्दरम् सुन्दरम् हो गयी।
कामनाएँ बढ़ी इस तरह
भावना बे धरम हो गयी।
चाहना है बदल कर सखे!
राम से आज रम हो गयी।
घोर वैषम्य के ध्वंश हित
हर गजल एक बम हो गयी।
जगा 'सन्देश' दे कवि! नया
मौन कैसे कलम हो गयी?