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गज़ल जागण के लिए / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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भोर की शबनमी जालियाँ जालियाँ।
खिलखिलाने लगीं बालियाँ बालियाँ।
अंग प्रत्यग में छवि वसन्ती जगी
लहलहाने लगीं डालियाँ डालियाँ।
है प्रगति पर प्रदूषण शहर दर शहर
हर्ष उत्कर्ष पर नालियाँ नालियाँ।
लग न पाया अभी जाम पा जाम है
फूट कर रो पड़ी प्यालियाँ प्यालियाँ।
खूब पीकर जिधर से गुजर वे गये
स्वागतोत्सुक मिलीं गलियाँ गालियाँ।
जिन्दगी हर कदम पर परीक्षा बनी।
रात दिन हो गये पालियाँ पालियाँ।
कह रहा हूँ गजल जागरण के लिए
तालियाँ तालियाँ तालियाँ तालियाँ।