गुज-गुज अन्हरिया में,
रात के भोरहरिया में,
फुटलोॅ छै किरण एक सरङोॅ के कोरोॅ पर!
गुजरै छै गीत एक धरती के ठोरोॅ पर!
सुखलोॅ अरमान-आस
फेरु अँखुआबै छै
जीयै के ललक-प्यास
जिनगी ने पाबै छै
फेरु सें दखिना केॅ अत्तर में बोरी केॅ
ठुमकै छै चन्दन-वन बंशी के पीरोॅ पर!
सूनोॅ घर-बार डहर
गाँव-शहर सिहरै छै
सहमी केॅ मन-मारलोॅ
अपनेती सम्हरै छै
फेरू सें किल्लत छै हिम्मत बटोरी केॅ
खड़ुआबै लेॅ आतुर औङठा के जोरोॅ पर!
गजुरै छै गीत एक धरती के ठोरोॅ पर!