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गणतंत्र-स्मारक / महेन्द्र भटनागर

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गणतंत्र-दिवस की स्वर्णिम

किरणों को मन में भर लो !


आलोकित हो अन्तरतम,

गूँजे कलरव-सम सरगम,

गणतंत्र-दिवस के उज्ज्वल

भावों को मधुमय स्वर दो !


आँखों में समता झलके,

स्नेह भरा सागर छलके,

गणतंत्र-दिवस की आस्था

कण-कण में मुखरित कर दो !


पशुता सारी ढह जाये,

जन-जन में गरिमा आये,

गणतंत्र-दिवस की करुणा-

गंगा में कल्मष हर लो !