भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गणतंत्र-स्मारक / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
गणतंत्र-दिवस की स्वर्णिम
किरणों को मन में भर लो !
आलोकित हो अन्तरतम,
गूँजे कलरव-सम सरगम,
गणतंत्र-दिवस के उज्ज्वल
भावों को मधुमय स्वर दो !
आँखों में समता झलके,
स्नेह भरा सागर छलके,
गणतंत्र-दिवस की आस्था
कण-कण में मुखरित कर दो !
पशुता सारी ढह जाये,
जन-जन में गरिमा आये,
गणतंत्र-दिवस की करुणा-
गंगा में कल्मष हर लो !