गप्प सुनो जी, गप्प सुनो / प्रकाश मनु
गप्प सुनो जी, गप्प सुनो,
एक अजब सी गप्प सुनो,
मीठी-मीठी गप्प सुनो,
ताजी-ताजी गप्प सुनो!
मेरे दादा के दादा के,
दादा के जो परदादा जी,
तगड़ी सेहत थी उनकी, वे
खाया करते थे ज्यादा घी।
दस मन लड्डू और इमरती,
दस मन बरफी, बालूशाही,
खाकर कहते-भूख अभी है
थोड़ी रबड़ी भी दो भाई!
फिर दो मन रबड़ी आई तो,
वो भी हो गई हप्प सुनो,
गप्प सुनो भई, गप्प सुनो,
एक अजब सी गप्प सुनो,
मीठी-मीठी गप्प सुनो,
ताजी-ताजी गप्प सुनो!
एक गजब के लंबूमल थे,
नाक बहुत लंबी थी उनकी,
झटपट बूझ लिया करती थी
बातें छिपी हुईं सब मन की।
कहते थे वो-बू आती है,
बना रसोई में है हलवा,
टुन्नू जी, क्यों छिपा रहे हो
जन्मदिवस का है क्या जलवा!
साठ कोस से बता दिया
करते थे, घर में छोंकी भिंडी,
बैठे थे लाहौर, नाक पर
जा पहुँची थी रावलपिंडी।
रावलपिंडी में किसके घर
देशी घी का लगा बघार,
लंबूमल से पूछो भैया,
बतलाने को वे तैयार।
अधिक बताता मैं तुमको पर
बत्ती हो गई झप्प सुनो,
गप्प सुनो भई, गप्प सुनो,
बड़ी करानी गप्प सुनो,
एक अजब सी गप्प सुनो!
बंदर एक बड़ा मोटा था,
लेकर चलता वह सोंटा।
सोंटा उसका नाचा करता,
सबके मन को बाँचा करता।
एक दिन आए लंबूलाल,
मोटी अक्ल, लटकते गाल।
सोचा-सारे पेड़ कटाऊँ,
और यहाँ एक महल बनाऊँ!
ताड़ गया बंदर का सोंटा,
सोंटा था जो सचमुच मोटा।
भागा-भागा सोंटा पीछे,
आगे लंबू सोंटा पीछे।
लंबू जा पहुँचे आकाश,
पहुँच गए चंदा के पास।
मगर वहाँ भी पहुँचा डंडा,
मचा दिया था खूब वितंडा।
तब लंबू ने माफी माँगी,
हाथ जोड़कर माफी माँगी।
सोंटा था तब जमकर नाचा,
बजा दिया लंबू का बाजा।
बंदर हँसकर जाता आगे,
लंबू जी तब डरकर भागे।
खत्म हुई यह गप्प सुनो,
टप से टपकी टप्प सुनो,
गप्प सुनो भई, गप्प सुनो,
अजब-अनोखी गप्प सुनो!