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गया वो राह पे अपनी इधर नहीं आया / रचना उनियाल
Kavita Kosh से
गया वो राह पे अपनी इधर नहीं आया,
निगाह खोजती उसको नज़र नहीं आया।
यही तमन्ना करे दिल सनम मिलोगे तुम,
हर हिचकी ने कहा ये हमसफ़र नहीं आया।
ज़ुबाँ कहेगी वही बात जो लगे सच्ची,
ख़ुशामदी करें झूठी हुनर नहीं आया।
है जानम तोड़ चला दिल कहें आशिक़ कैसे,
चला गया वो सनम लौट कर नहीं आया।
समेट ले सारी मुश्किल हमारे दर्दों को,
ख़ुशी पायेगा कभी दिल वो दर नहीं आया।
चले आये तेरे घर पे सनम लिये सपने,
हुआ है ख़ौफ़ज़दा दिल अगर नहीं आया।
लिखे है शायरी ‘रचना’ कहे बड़े दिल से,
कहें क्यों दोस्त भी मेरे असर नहीं आया।