भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गय खुशबू / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
बाबा मालबावू नाना छौ कमाल बाबू गै
पप्पाा रोकड़िया लग नानी मारौ टाल बाबू गै
बाबा खातिर चाहक गिलास
लबलब लबनी नाना पास
नानी चुक्काू ढारौ बान्हिा-बान्हिल रूमाल बाबू गै
बाबा लेलनि माँछे कीन,
नाना खेलनि मुँरगा तीन
नानी भनसा घरमे लगा रहल छौ ताल बाबू गै
बाबा वॉचथि वेद पुरान
नाना पढ़थि नेवाज कुरान
नानी मुल्ला जीसँ पूछि रहल छौ हाल बाबू गै
नाना भोरे भगला बाहर
नानी सॉझे पहुँचलि ठाहर
ई सभ कहए आएल विद्याधर आ लालबाबू गै