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गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद / मह लक़ा 'चंदा'

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गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद
सर रखूँ कदमों पे जब तेरे मुझे आती है नींद

देख सकता ही नहीं आँखों से टुक आँखें मिला
मुंतज़िर से मिस्ल-ए-नर्गिस तेरे शरमाती है नींद

जब से ये मिज़गाँ हुए दर पर तेरे जारूब-कश
रू-ब-रू तब से मेरी आँखों के टल जाती है नींद

ध्यान में गुल-रू के चैन आता नहीं अफ़साना-गर
ले सबा से गाह बू-ए-यार बहलाती है नींद

अश्क तो इतने बहे ‘चंदा’ के चश्म-ए-ख़ल्क़ से
क़ुर्रत-उल-ऐन-ए-अली के ग़म में बह जाती है नींद