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गरमी की सौगात / निशान्त जैन
Kavita Kosh से
गरमी की भी भैया सचमुच अजब-गजब है बात,
हँसी-खुशी की, मौज-मजे की, लाई है सौगात।
मोटी-मोटी पोथी-पत्री से मुक्ति है,
मार-पिटाई फटकारों से अब छुट्टी है,
फिरें गली-कूचे में बच्चे बिल्कुल खाली हाथ।
टंटे-झगड़े-रगड़े-झंझट सब निपटे हैं,
छुटकू-बड़कू-लड़कू खुशियों से लिपटे हैं,
कुल्फी-चुस्की लगी चूसने मोहल्लों की जमात।
खाने-पीने के शौकीनों की है आई मौज,
आम ही नहीं संग है लाई फलों की लंबी फौज,
खीरा-खरबूजा-तरबूजा, लाई ककड़ी साथ।
चाहे जितना खेलें-कूदें मरजी अपनी,
हसरत पूरी कर लें सारी दिल की अपनी,
पना और शिकंजी पीकर, दें गरमी को मात।
साल-साल भर इंतजार इसका करते हैं,
हो न जाए खतम ये मौसम बस डरते हैं,
पापा चलो पहाड़ जल्द, आ जाएगी बरसात।