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गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 10 / नूतन प्रसाद शर्मा

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किहिस सुकलिया- “मोला खीचिंस- बाल गरीबा के इस्नेह
एकर साथ भेंट जब करथवं, मोर ह्मदय पाथय संतुष्टि।
एक काम अउ बढ़िया होइस- दसरु संग होगिस मिल भेंट
ओहर निश्छल चंचल लइका, सितरा जुड़ा दीस मन मोर।”
गीस सुकलिया अपने घर तन, टुरा गफेलत अउ अउ मांग
तनगे पेट गोल कोंहड़ा अस, तंहने उठिन खवई ला छोड़।
बोलिन-”कुछुच चीज नइ चहिये अब तो बुतगे हाही।
नंगत लगत उंघास हमन ला दसना खटिया चाही।
ठंउका में लइका मन झुमरत, सुद्धू दउड़ बिछादिस खाट
उठा सुतावत भर मं भइगे- दूनों झन के आंख हा बंद।
दुनों टुरा मन एकमई ढलगें, उंकर भयंकर घटकत नाक
सुद्धू बिसरु हर्षित होवत, लइकुसहा के मुंह ला देख।
बुजरुक मन तक सुते चहत हें, आंख मूंद के करत प्रयत्न
पर बालक के कंझट कारण, आवत नींद तेन भग जात।
बिसरु टेम कटे बर बोलत- “तोर कष्ट ले होवत सोग
घर के सरी बुता निपटाथस, तिहिंच एक झन दुख ला भोग।
तेकर ले सलाह मंय देवत, तिरिया बना लान ले खोज
ओकर आय ले दुख हा कमसल, कनिहा नवत तेन हा सोज”
“भितरंउधी हे आस अतिक अस- बढ़य गरीबा करंव बिहाव
ओकर भलले मोर घलो भल, मात्र पुत्र हा लिही हियाव।
एक रहस्य पुनः फोरत हंव- आय गरीबा हिनहर फूल
ओला मंय गुणवान बनाहंव, ताकि भविष्य प्रकाशित होय”
कहि के सुद्धू आंख ला मूंदत, बिसरु तक सोवत चुपचाप
रतिहा हाजिर काम करे बर, लेत अराम गांव अतराप।
खोर गली मन शांत तिही बिच, दौड़ो दौड़ो चलिस अवाज
ग्राम निवासी झकनका उठगें, अभिन बिगड़गे काकर काम?
सुद्धू बिसरु आरो ओरखिन- सोनू घर तन खदबद होत
बेंस लगा दूनों झन तरकिन, मनसे दल जावत जे कोत।
सोनसाय के घर मं पहुंचिन, उंहा लगे हे गंजमंज भीड़
सब के मुड़ पर प्रश्न के मोटरी, जमों चहत हें सही जुवाप।
सुद्धू पूछिस अंकालू ला- “तंय हा काबर दउड़ के आय
मनसे भीड़ करत हे कलबल, कुछ तो कारण ला कहि साफ?”
अंकालू छरकिस- “तंय सच सुन- तोर असन मंय तक अनजान
जोरहा चिहुर कान मं अमरिस, तंहने इंहा दउड़ के आय।”
किहिस परस- “तुम धीरज राखव, सोनू फुरिया दिही रहस्य
कार रातकुन हांका पारिस, जनता ला का वजह बलैस!”
आखिर सोनसाय हा बोलिस, कलबिल भीड़ के चिल्लई दाब-
“कान खोल के जम्मों सुन लव, मंय फोरत हंव घटना सत्य।
तुम्मन तिजऊ ला टकटक जानत, दिखब मं साऊ गऊ इंसान
वास्तव खतरनाक अपराधी, जिनिस चोराय घुसिस घर मोर।
एहर आलमारी ला टोरिस, उंहा के हेरिस रुपिया सोन
तभे उदुप मंय पहुंच गेंव अउ, रंगे हाथ खब पकड़िच लेंव।
मंय महिनत कर धन जोड़े हंव, सदा रखे हंव अपन इमान
तभे तिजऊ हा भाग सकिस नइ, रंगे हाथ खब पकड़ा गीस।
एकर कर रुपिया-आभूषण, करो पंच मन झपकुन जप्त
तिजऊ के जुर्म क्षमा-लाइक नइ, एला दण्ड देव सब सोच।”
घंसिया जिनिस ला झटके लेथय , सोनसाय के करिस सुपुर्द
किहिस तिजऊ ला- “तंय चोरहा अस, सब अपराध प्रमाणित होय।
सोचे रेहेस- धनी मंय बनिहंव, कंगला के कंगला रहि गेस
सोचेस- मंय ओंटइट ले खाहंव, पर व्यापत हे सप-सप भूख।
सत्य बिखेद फोर सब-सम्मुख, सोनू के घर घुस गे कार
सिधवा अस-कानून ला डरथस, पर का वजह करे अपराध?”
तिजऊ जुरुम फट ला इन्कारिस, “कोन कथय मंय हा अंव चोर
सोनसाय खुद गलत राह पर, डारत हवय मोर पर दोष।”
सब ग्रामीण क्रोध भर जाथंय, परस हा कई थपरा रचकैस
भड़किस -”तंय हा स्वयं चोर हस, कोतवाल ला डांटत खूब।
तोर हाथ ले जप्त होय धन, तब ले करत हवस इन्कार
सब अपराध हुंकारु भर दे, वरना तंय खाबे अउ मार।”
आखिर तिजऊ सतम ला उछरिस-”पहिली मोर पास धन-भूमि
याने मंय हा अतका पुंजलग, चलय सुचारु मोर परिवार।
मोर पास जे मंगय सहायता, मंय हरहिंछा मदद ला देंव
सब के भार लेंव धारन अस, सब अतराप प्रतिष्ठा मोर।
इही बीच होगिस एक गलती, सोनू ला बनाय मंय मित्र
“महाप्रसाद’ बदेंव ओकर संग, दू ठन जीव – एक ठन प्राण।
ओहर शुुरु करिस लूटे बर, अपन चई भर लिस धन-भूमि
सोनसाय हा कंगला कर दिस, मंय बनगेंव हंसिया बनिहार।
हवय अमोल बिजा एक दाना, पोट-पोट भूख मरत परिवार
सोनसाय – तिर ऋण मांंगेव मंय, पर लहुटा दिस खाली हाथ।
मोला प्राण बचाय रिहिस हे, तब चोराय बर निर्णय लेंव
आज अनर्थ करे हंव मंय हा, सोनसाय हा जिम्मेदार।