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गरीबा / बंगाला पांत / पृष्ठ - 6 / नूतन प्रसाद शर्मा

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खूब अकबका भीड़ हा देखत, बोलई बंद मुंह हा चुपचाप
बक खा गीन गरीबा मेहरु, मानों सूंघिस बिखहर सांप।
हांक बजा के जइतू बोलिस -”सुन लव बात कृषक बनिहार
मंय हा लछनी ला अपनाहंव, खिघू के सरियत हा स्वीकार।
मंय हा दाइज नइ मांगव – नइ होवन दंव बरबादी।
व्यर्थ खर्च ला रोक लगाबो – साधारण अस शादी।
सब मनसे के हृदय फूल गिस, मगर पुसऊ ला ब्यापत फिक्र
चम्पी हा कारण जाने बर, करिस पुसऊ ले तुरुत सवाल –
“जइतू हा स्वीकार लीस सब, करिहय लछनी साथ बिहाव
ओहर दाइज तक नइ मांगत, हर्षित हवंय जमों इंसान।
नोनी के तंय सगे ददा अस, मगर लुकावत अपन विचार
यदि मन मं शंका हे कोई, सब के पास खोल दे साफ?”
बोलिस पुसऊ -”तुमन जानत हव – भारत हा शहीद हो गीस
ओकर विधवा अमरउती हा, पावत हवय कष्ट गिदगीद।
याने सेना के जवान मन, बोकरा असन मरत अध बीच
तंहने ओकर खटला बपरी, आपसरुप घुसत दुख कीच।
यदि जइतू पर कुछ दुर्घटना, लछनी के भावी बर्बाद
इही सोच मंय नटत पिछू तन, जइतू ला नइ देत जुवाप।”
मेहरुकथय -”गलत सोचत हस, शंका तोर स्वप्न अस व्यर्थ
सब सैनिक मन बीच मरंय नइ, कतको झन भोगत सुख अर्थ।
मन के भ्रम डर ला बाहिर कर, लछनी ला जइतू संग भेज
इनकर जोड़ी लकलक फभिहय, तोर माथ हा उठिहय ऊंच।”
खिघू किहिस -”शुभ टेम पाय हस, लछनी ला जइतू तिर हार
सब के मन जोड़ी पर जावत, तंय संबंध ला कर सिवकार।
अगर सुअवसर ले चूकत हस, फिर नइ पास समय कंगाल
जइसे बेंदरा फेर पाय नइ, अगर हाथ ले छूटत डाल।”
पुसऊ जमों के कहना सुनथय, मन मं खूब विचारिस घोख
बोलिस -”तुम्हर सलाह जंचत हे, मंय उत्तर देवत हंव सोध।
लछनी ला मंय हिले लगाहंव, सिर्फ एक जइतू के साथ
मगर “बिदा’ ला अभि रोकत हंव, एक बात हा आवत आड़ –
धरमिन – आत्मा शांत होय नइ, ए कारण शुभ काम थेम्हात
कुछ दिन बाद अपन लछनी ला, करिहंव बिदा हर्ष के साथ।
पर जइतू ले आस एक ठक – रहय अपन प्रण मं अंड़ ठाड़
वरना लछनी के चरित्र पर, लग जाहय बदनाम के दाग।”
जइतू हा स्वीकार करिस तंह, सबके मन भर गिस संतोष
पुसऊ के हिरदे फूल फूल गिस, काबर के पागिस प्रण ठोस।
खिघू हा पुसऊ ला झिड़की दिस -”जइतू जब बन गीस दमांद
एमन ला जेवन करवा अउ, बढ़ा प्रेम ला कड़कड़ बांध।
जइतू मेहरुपुसऊ गरीबा बइठिन खाए खाना।
लछनी लजालजा के परसत देखत हे करनेखी।
जइतू अउ लछनी मन देखिन, एक दुसर ला तिरछा नैन
कुछ मुसकान मुंहू पर आवत, मगर प्रेम नइ खोलिन बैन।
इंकर दुनों के हालत देखिन, मेहरुअउर गरीबा मित्र
मगर बात ला लुका के रख लिन, फइलन दीन प्रेम के इत्र।
जेवन कर जब बाहिर आथंय, तब इनकर मं चलत मजाक
कथय गरीबा हा मेहरुला -”सुन तो मित्र एक ठक बात।
मंय लछनी ला देख पाय नइ, मंय तो भोजन मं बिपताय
यदि तंय लछनी ला देखे हस, बता भला ओकर कस रुप?”
मेहरुकिहिस – “करंव का वर्णन, लछनी हे खूबसूरत दिव्य
जइतू ओकर एंड़ी के धोवन, टका सेर के अंतर जान।
बिगर पुछन्ता के होवत हम, जइतू करय हमर नइ याद
लछनी संग मं भूले रहिहय, काकर करा करन फरियाद!”
जइतू हा मुसकावत बोलिस – “झनिच लगाव मोर पर दोष
सब संबंध तुम्ही जोड़े हव, अपन कर्मफल तुम खुद खाव
पर मंय रायगढ़ शहर मं रहिथंव, हम जानत मित्रता के अर्थ
तुम्हर कदर जीवन भर करिहंव, अमर सदा बर रिश्ता मीठ।”
तीनों झन सुन्तापुर लहुटिन, अैनस गरीबा अपन मकान
तभे अैझस टहलू अउ बोलिस -”आय मोर पर दुख के भार।
जब धनवा के सब नौकर मन, करे रेहेन हठकर हड़ताल
उही बखत मंय बदे रेहे हंव – बोहंव अवस जंवारा जोत।
मोर कसम हा झन टूटय कहि, उठा डरे हंव बड़ जक काम
पर रुपिया के परत लचारी, जबकिन अठवई लगगे आज।
नरियर लिम्बू बोकरा कुकरी, अब तक ले नइ पाय खरीद
देव काम हा सिद्ध हे निश्चय – जब लेहंव ऊपर के चीज।
मोर पास हे खेत एक ठन, ओला बेच दुहूं मंय आज
यद्यपि अंतस मं दुख होवत, मगर सिद्ध करिहंव शुभ काम।”
कथय गरीबा -”भइया टहलू, अब तो नींद छोड़ के जाग
तोर पास जब कुछ कूबत नइ, काबर धरत व्यर्थ फटराग!
देव – धर्म ला निश्चय मानों, लेकिन पूर्व जांच लव टेंट
गलत काम ला तंय उठाय हस, जब नइ शक्ति भरे बर पेट।
अब तंय हा कइसे निपटाबे, आय मुड़ी पर गहगट काम
पूर्ण करत तब कंगला होवत, अगर अपूर्ण होत बदनाम।”
किहिस गरीबा हा समझौती, पर टहलू ला लग गिस बाण
तमकिस -”सब उपदेश ला देथंय, मगर मदद ले झींकत हाथ।
धनसहाय हा हवय दयालू, जेहर सबके हरथय कष्ट
ओकर शरण मं अब गिरना हे, काबर करंव समय ला नष्ट!”
खूब भड़क के कथय गरीबा -”अपन ला बेंचेस धनवा – हाथ
अब ओकर तिर खेत ला बेचत, अपन गृहस्थी बेंच दे बाद।
तुम्हरे धन ला धनवा खाथय, ऊपर ले हलात छे हाल
साग के मोल मं धरती लेथय, सब ला बना डरिस कंगाल।”