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गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा

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मोर राह पर पर तक चलिहय, तंह परिवर्तन आहय गांव
हमर उंकर मिहनत ले होही, नरक असन हा सरग समान।”
कथय गरीबा ला सांवत हा -”दुकली हा करलिस स्वीकार
अपन वाक्य पर कायम रहिहय, दिही सदा दसरू ला साथ।
जमों भार हे तोरे ऊपर, दसरू के नइ अन्य सियान
चट मंगनी पट शादी करके, लहुट जबे तंय अपन निवास।”
परिस दुसन्धा बीच गरीबा, हां या नइ – उत्तर नइ देत
आखिर अपन चलिस सांवत संग, सनम के मुड़ बोझा ला खाप।
बोलिस -”देख सनम तंय जानत – धनसहाय हे स्वार्थी जीव
अपन काम ला पूर्ण कराथय, ठेंगवा ला देखात हे बाद।
तंय हा जागरुक अस रहिबे, आय सुरक्षित जमों अनाज
एकोकनिक हानि झन होवय, रखत जुंड़ा ला खांद मं तोर।”
जहां सनम हा स्वीकृति देइस, होत गरीबा हा निÏश्चत
ओहर जावत नवा करेला, सांवत घलो चलत हे साथ।
एमन जब दसरू घर पहुंचिन, आमा लीम के मड़वा छाय
घर के आगू बांस गड़े हे, छेना अरसा राखे गूंथ।
दिखत बरत अस घर कुरिया हा, पंड़री पिंवरी छुही पोताय
कतको चित्र खिंचे मिथिया भर, होवत ग्रामीण संस्कृति गान।
दसरू के तिर गीस गरीबा, दसरूहोवत खुश अंधेर
“अड़े काम कइसे निपटावन? सुम्मत बांधत दुनों मितान।
जमों भार मितवा पर गिस – अब दसरूदुलहा राजा।
दिन बुड़गे तंह चुलमाटी गिन संग धर दफड़ा बाजा।
माटी कोड़त मार के साबर, चिंता अपन परानी साथ
बेलबेलही टूरी मन हंस हंस, भड़त जंहुरिया के धर खांध-

“तोला साबर धरे ला
तोला साबर धले ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन तोलगी ला तीर, धीरे धीरे
तोला माटी कोड़े ला

तोला माटी कोड़े ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन मेंछा ला तीर, धीरे धीरे
तोला माटी जोरे ला

तोला माटी जोरे ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन पागा ला तीर, धीरे धीरे
तोला माटी बोहे ला

तोला माटी बोहे ला नइ आवय मीत, धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन कनिहा ला तीर, धीरे धीरे”

जहां इहां के रुसुम हा उरकिस, वापिस होथंय बार मसाल
भितरी “चोरहा तेल’ चढ़ाइन “मुड़ा लाय’ के थोरिक बाद।
“तेल मैन’ होथय दूसर दिन, दुलहा नहा लीस जल साफ
पर्रा पर बइठार किंजारिन, मितवा मन दुलहा सम्हरात।
मुड़ पर “मौर’ झूल दरपन के, गला मं सुंतिया – काजर आंख
अदक नवा कुरता अउ धोती, मन चोरात हे वर के रुप।
दुलहा सजा के इज्जत देवत, खड़ा करिन एक परछिन ठौर
दिया बरत करसी ला लानिन, तिरिया मन संउपत हें सौर –

“पहिरव दाई ओ सोना कइ कपड़ा
ओ सोना कइ कपड़ा
संउपउ दाई मोर हंसी के मौर।
हमरे दाई हा बड़े ओ अजूबिन
दाई बड़े ओ अजूबिन
मंगथे ओ दाई दूध के धार
दे तो दाई- दे तो दाई अस्सी ओ रुपिया
के सुन्दरी बिहन बर जाऊं
तोर बर लाहूं दाई रंधनी – पोरसनी
के मोर बर लाहंव जनम सिंगार
गोबर हेरइबे दाई पानी भरइबे
छूट जही दाई के दूध के उधार
सुंदरी सुंदरी दाई तुम झन रटिहव
के सुंदरी के देसे बड़ दूर
चढ़े बर कथे दाई लिली हंसा घोड़वा
के सुंदरी ला लानव बिहाव
एक गोड़ मारो बेटा रइया रतनपुर
कि दुइ गोड़ मारो बेटा दिल्ली सहर
खड़े खड़े पांव पिरागे, पिरागे माथे के मौर
धोतियन फिलगे न कुरथन फिलगे माथे के मौर
पहिरव दाई – पहिरव दाई
ओ सोना कइ कपड़ा – ओ सोना कइ कपड़ा
संउपउ दाई मोर हंसी के मौर।

अब तड़तड़ी बरतिया जाये, कपड़ा सम्हर होत तैयार
वृद्ध युवक बालक मन जावत, सब के मन मं बड़ उत्साह।
नांदगांव मं गीस बरतिया, देखे बर जुटगे भिड़भाड़
बाजा सुन घेरिन चंवतरफा, लोरत गिद्ध मांस के पास।
शहर के बेलबेलहा टूरा मन, इंकर बुगई चुटचुट खन दीन
युवती मन हा तंग करे बर, नंगत भड़त मुड़ी ला जोर –

“आमा पान के बीजना हालत डोलत आये रे।
किसबिन के बेटा हा बरात लेके आये रे।
करिया करिया दिखथस बाबू
काजर कस नइ आंजे रे
दाई ददा ऊपर चल दिन
घर घर बासी मांगे रे।
तरिया तिर के पटुवा भाजी
पटपट पटपट करथय रे
गांव करेला के टूरा मन
मटमट मटमट करथंय रे
आती गाड़ी जाती गाड़ी
गाड़ी मं लानेंव सूत रे
हमर दुलहा डउका ला
ले जाये कउनो धर के।