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गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 3 / नूतन प्रसाद शर्मा

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इही मंझोत अैसस बइसाखू, गोठियावत दसरू के साथ –
“दुखम सुखम निपटा लेबे भइ, बपरी दुकली दीन अनाथ।
एकर भाई जेन अंजोरी, जेकर जीव व्यर्थ चलदीस
यदि एला कुछ विपदा मिलिहय, तंहने दुख मं वृद्धि अपार।”
दसरू कथय -”एल झन मोला, मंय खुद हा नइ जीव विशेष
हम अउ दुकली अन एके अस, एक दुसर के करबो मान।
दुकली के सलाह मंय सुनिहंव, ओकर बर हे साफ विचार
अगर बीच कुछ खट्टा पांजी, करबो खतम सतम ला पूछ।”
इंकर बीच मं अै्स गरीबा, बइसाखू ला कहिथय हांस –
“दसरू के मन उड़त रुई अस, लुकलुकात हे करे बिहाव।
तंय उमंग मं बाधा झन बन, मंय हा ठेलहा अस निÏश्चत
मोर साथ तंय गोठिया मन भर, मोर प्रश्न के उत्तर लान-
अपन कथा फुरिया थोरिक अस, कइसे चलत तोर परिवार
नांदगांव के मुख्य खबर तक, टैड़क चइती के कहि हाल?”
बइसाखू हा उत्तर देथय -”बढ़िया चलत मोर परिवार
अपन नौकरी फिर पाये हंव, जमों जुरुम ले मंय आजाद।
चइती टैड़क नंदले जेमन, मरत ले भोगिन आर्थिक कष्ट
ओमन काम चलावत संघरा, मुद्रणकल के ऊंकर पास।
जतका लाभ प्रेस मं आवत, जमों श्रमिक मन खावत बांट
उहें छपिस मेहरू के पुस्तक, रुके काम पूरा हो गीस।
ग्राम के लेखक मरथंय रुरघुर, उंकर नाम जग ले मिट जात
ओमन ला अब करे प्रकाशित, करत इहिच संस्था हा काम।
ओहर सब तन पता लगाथय, लेखक मन के करथय खोज
उंकर सरत रचना सहेजथय, पुस्तक छाप करत उद्धार।”
धन्यवाद अब देत गरीबा -”भूखा ला जेवन मिल जाय
मरत बिमरहा ला औषधि अउ, झुक्खा खेत ला जल के धार।
चइती मन जे काम करत हें, ठंउका मं ओहर उपकार
गांव के लेखक अब उत्साहित, उंकर कलम धरिहय रफ्तार।”
मेहरू के पुस्तक जे छपगे- क्रांति से शांति हे जेकर नाम
ओकर प्रति बइसाखू तिर हे, दीस गरीबा ला झप हेर।
बोलिस -”तंय मेहरूला कहिबे – ओकर पुस्तक छपगे जेन
पुस्तक के मंय करत समीक्षा, चिभिक लगाके लिखिहंव लेख।
यदि रचना के स्तर उत्तम, तर्क साथ करिहंव तारीफ
यदि रचना के स्तर नीचे, मंय हिन के लिख दुहूं विरुद्ध।
पर मेहरू विचलित झन होवय, पक्ष विपक्ष तभो ले लाभ
बीज छिंचत सीधा या टेड़गा, मगर भूमि ले जामत पेड़।”
चुटपुट चुटपुट करत गरीबा, बइसाखू तिर रखिस सवाल-
“मींधू ला पढ़ाय हस तंय हा, जीवनकथा ला जानत साफ।
पहिली गलत राह पर रेंगिस, बाद बनिस हे थानेदार
तंय निर्दाेष आस नभजल अस, तेला बेली तक पहिरैस।
पर हठील अस जन दुश्मन संग, मींधुच हा टक्कर ला लीस
अउ समाज के हित के खातिर, निज जीवन ला करिस शहीद।
अतका बढ़ा कथा मंय बोलत, एकर अर्थ समझ ले साफ
मंय हा कठिन प्रश्न लानत हंव, तंय उत्तर ला ढिल निष्पक्ष-
मींधू नेक- कर्म के उत्तम, नायक अस गुण अनुकरणीय?
या ओकर सब काम गलत हे, खलनायक दुर्गण के खान?”
बइसाखू हा सोच मं परगे, फिर देवत हे उत्तर ठोस-
“मींधू पहिली जनता के अरि, मगर बाद जनता के मित्र।
चलिस काव्य मं गलती धारा – नायक बनिस एक झन व्यक्ति
ओकर होय प्रतिष्ठा पूजा, कवि मन लिखिन गीत यशगान।
दूसर व्यक्ति बनिस खलनायक, ओकर करिन बुराई खूब
पर ए लेखन दोष से लबलब, होत दिग्भ्रमित भावी वंश।
सच मं हर मनसे हा होथय – गुणी अवगुणी योग्य अयोग्य
कर्म वक्त स्थान परिस्थिति, परिवर्तन इनकर अनुसार।
एक व्यक्ति नायक नइ होवय, ना सदगुणी न मानव श्रेष्ठ
ओकरो तक मं दोष बुराई, आलोचना के लाइक काम।
दूसर खलनायक नइ होवय, ना अवगुणी न नीच खराब
ओकरो तक मं गुण अच्छाई, तारिफ लाइक ओकर काम।”
पैस गरीबा प्रश्न के उत्तर, ओकर जिज्ञासा हा शांत
मिहनत करिन दूनों झन मन मिल, तेकर मिलिस उचित परिणाम।
बातचीत हा सरलग रेंगत, तेमां परगे फट ले आड़
बाहिर तन मनखे चिल्लावत, ओतन भागत पल्ला छोड़।
एमन सोचत – मनखे मन काबर चिल्लावत भारी।
चलव वास्तविक पता लगावन काय होत अनहोनी।
चलिन गरीबा अउ बइसाखू, पहुंचिन एक जगह बिन बेर
उहां मुख्यमंत्री हा हाजिर, ओहर फंसे कष्ट के बीच।
ओकर चारों तन हें मनखे, ओमन करत बिकट घेराव
मनखे मन हा क्रोधित नंगत, डेंवा उनकर मुखिया आय।
उहां हवय उद्योगी मंगलिन, घना बगस अउ बाबूलाल
पत्रकार अधिकारी जनता, हाजिर शहराती ग्रामीण।
डेंवा किहिस मुख्यमंत्री ला -”तुम नेता मन धोखाबाज
अपन मान धन पद राखे बर, बोलत रथव रटारट झूठ।
छेरकू मंत्री ला जानत हस, ओहर करिस वायदा एक
बांध बनाय दीस आश्वासन, लेकिन अब तक काम अपूर्ण।”