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गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 6 / नूतन प्रसाद शर्मा

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लेकिन डकहर सुखी हें घालुक, देखत हवंय अपन भर स्वार्थ
धनसहाय ला दीन पलोंदी, जन्नविरुद्ध करा दिन काम।
लपटे रथय पेड़ पर बेला, पेड़ के ओहर रक्षक गार्ड
जलगस बेला पूर्ण सुरक्षित, पाये पेड़ अभय बरदान।
पेड़ कटाये यदि सोचत हव, बेला पर तुम करव प्रहार
बेला कटा अलग हो जाहय, तंहने पेड़ गिरा लव काट।
डकहर सुखी हवंय तलगस ले धनवा के दम दूना।
यदि ओकर पर हमला होवत कोतल दिहीं पलोंदी।
पहिली डकहर सुखी ला झड़कव, उंकर हाल ला कर दव पश्त
तब धनवा पर वार ला मारव, निश्चय काम सफल निर्विघ्न।”
हवय गरीबा के तिर पुस्तक – क्रांति से शांति तक जेकर नाम
ओला मेहरू ला संउपिस अउ, हिरदे शुद्ध करिस तारीफ –
“तंय जे नीति बताये हस अभि, ओहर हवय ठोस गंभीर
मंय इनाम मं पुस्तक देवत, तंय हर्षित मन कर स्वीकार।”
मेहरू जे रद्दा ला फोरिस, सब ग्रामीण समझगें अर्थ
ओमन डकहर सुखी के तिर गिन, कुचरे बर मुहरुत कर दीन।
जेहर पावत ओहर मारत, जे पावत ओमां रचकात
मारत तेहर हंइफो हंफरत, खावत मार के हाल खराब।
डकहर सुखी केंघरगे तंहने, बुतकू करिस उंकर तिर प्रश्न –
“तुम जनता संग मरे जिये बर, किरिया खाय रेहेव प्रन ठोस।
लेकिन का आकर्षण खींचिस, धनवा पास फेर तुम आय
तुम्मन काय लाभ पावत हव, जे लेवत धनवा के पक्ष?”
गुनिस सुखी यदि भेद लुकावत, लिंही गंवइहा मन हा जान
तेकर ले सब तथ्य ला उगलन, अपन दुनों के जीव बचान।
किहिस सुखी -”तुम सब जानत हव, धनवा से भागन हम दूर
ओकर ले नाता हा टूटिस, जनता संग जुड़गे संबंध।
पर धनवा पथभ्रष्ट करे बर, हमला दीस बहुत ठक लोभ
बोलिस – मोर पक्ष तुम लेवव, मंय देहंव कतको ठन लाभ।
मोर पास जतका चल अचला, लाये हंव जे उठा अनाज
सब ला बांट लेत हम तीनों, तुम दूनों तक हो हकदार।”
धनवा हा लालच दिस तंहने, सरन गिरे हन ओकर पांव
मगर लाभ मं कुछ नइ पावत, उलट परत थपरा भरमार।”
डकहर सुखी ला हगरूबोलिस -”तुम दुर्गत अपमानित होय
पहिली के रद्दा पर चलिहव, या बदले बर रखत विचार!
हम सब अपन जमों पूंजी ला, फट कर देन गांव अधिकार
गांव के हम अन गांव हमर ए, मिटगे भेद गांव ग्रामीण।
तइसे तुमन हमर संग चलिहव, या फिर धरिहव दूसर राह
प्रश्न के उत्तर देव तड़ाका, ताकि लेन हम निर्णय ठोस।”
डकहर सुखी भविष्य ला समझिन, अंदर हृदय से हेरिन बात-
“हमला गिधिया के झन पूछो, बात करे बर हम असमर्थ।
लेकिन हम अतका बोलत हन – हम ग्रामीण के लंहगर आन
जेन डगर ग्रामीण हा चलही, घिलर जबो हम अपने आप।
याने जन के साथ जिये बर, दूनों खड़े हवन तैयार
जे कानून गांव बर बनही, हम करबो हरदम सिवकार।”
डकहर सुखी निहू बन गिन तंह, सब ग्रामीण होत हें शांत
बन्जू राखे तथ्य लुका के, करना चहत बात ला साफ।
बन्जू बोलिस -”मंय हा पहिली, निहू बने बर किरिया खाय
अर्पण करे अपन धन ला मंय, लेकिन आय दिखावा मात्र।
कपट विचार रखे रेहे हंव, यदि धनवा के दिखिहय जीत
जे धन ला सुपरित दे देहंव, ओकर करिहंव वापिस मांग।
पर स्पष्ट हाल देखत हंव – क्रांति सफल होवत ए वक्त
अब जनता हा विजय ला पावत, तब जनता ला देवंव साथ।
याने जे धन ला संउपे हंव, कभू करंव नइ ओकर मांग
सुम्मतराज समर्पित मंय हंव, अपन बचन मं खत्तम ठाड़।”
मेहरू बोलिस -”हम जानत हन – तंय हा चले पूर्व जे चाल
तोर चाल ला नष्ट करे बर, हम जनता मन कड़क सतर्क।
लेकिन आज उचित जोंगे हस – रख ईमान देत हस साथ
एकर ले तंय दुख नइ पावस, सब मनसे मन हितवा तोर।”
बन्जू के रटघा हा टूटिस, आगू बढ़त क्रांति के पांव
धनसहाय पर रइ हा आवत, सब ग्रामीण खड़े हें घेर।
बोइर के गुठलू के अंदर, छुपे चिरौंजी हा चुपचाप
मगर चिरौंजी हा नइ निकलत, एकर बर बस इहिच उपाय।
पथरा ला गुठलू पर पटकव, गुठलू कइ कुटका बंट जाय
निकल चिरौंजी बार आवय, ओला झड़कव लेके स्वाद।
धनवा के मरुवा ला पकड़िन, दोंयदोंय झोरत ग्रामीण
धनवा लोझम परिस खाथंय खस, गिरगे दन्न ले बन बेहोश।
लेकिन धनवा हा मर जावत, चरपट होवत सब उद्देश्य
आखिर धनवा के रक्षा बर, अपने मन भिड़ करत उपाय।
धनसहाय के रक्षा होवत, देवत हवा छितत जड़ जूड़
लहू हा थम के दरद हा भागय, जोख के देवत दंवई निंघोट।
धनसहाय के चेत हा लहुटिस, सब तन देखत आंख नटेर
तब मनबोध ला लान गरीबा, रख दिस धनसहाय के गोद।
धनवा अपन पुत्र ला देखत, ओकर मुंह के “ऊंमा’ लेत
मानों – कभू पुत्र नइ देखिस, तइसे करत हृदय भर प्यार।
“सब के साथ मरे जीये बर, खाके कसम करे स्वीकार
पर टेटका अस रंग बदले हस, अपन बात ला काटे कार।?”
किहिस गरीबा तंहने देखत धनवा फार के आंखी।
अपन पुत्र के मुंह ला देखत देवत प्रश्न के उत्तर।
“मोर ददा मोरे बर छोड़िस – घर भुंइया धन गरुवा गाय
अपन बिन्द बर मंय सकलत हंव, सोन मचुलिया मं सुत खाय।