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गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 7 / नूतन प्रसाद शर्मा

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यदि शत्रुता भंजाये चाहत, मोर देह के निछ लव चाम
पर बेटा ला सुखी बनाना, एक पिता के वाजिब काम।”
“मानव के रिपु पुत्र हा होथय, करे हवय अध्यात्म बखान
छुद्र स्वार्थ के पूरा खातिर, पिता के सब यश सत्यानाश।
अपने अंश समझ सब झन ला, कर अर्पण अन धन बिन शोक
जीयत तोर मान पत होहय, मरे बाद गाहंय जस तोर।”
कई उल्थना गरीबा हा दिस, धनवा ला अड़बड़ समझैस
लेकिन नठे बुद्धि मं ओकर, एक शब्द तक घुस नइ पैस।
“भगवत गीता शिक्षा देवत – अगर अधिक मन पावत लाभ
तब कमती के रांड़ बेचावय, अइसन काम मिलत हे पुण्य।”
बोल गरीबा हा मनसे संग, धनवा के लेवत हे जान
इही बीच फगनी हा आथय, बोलत सब तिर करुण जबान –
“बन के निहू करत हंव बिनती – भले हमर अन धन ला लेव
मगर पुत्र एंहवात बचा दव, जीवन हमर अमर कर देव।”
फगनी जहां कल्हर के बोलिस, करिस गरीबा हा विश्वास
फगनी ले आश्वासन मांगत, खुद के पक्ष करे बर ठोस –
“धनवा के जब लेत संरोटा, तंय हमरो सरियत ला मान
जतका अस आड़ी पूंजी हे, कर दव तुरुत गांव के नाम।
तुम्मन कहिके पल्टी खावत, तब अभि लिखव प्रतिज्ञा पत्र –
सबके संग तुम जीहव मरिहव, अपन सबो धन गांव ला देत।
लीस गरीबा उंकर हाथ के हस्ताक्षर ला लौहा।
बनिन गवाह ग्रामवासी मन – ताकि होय झन नाही।
मनसे मन धनवा ला बोलिन – हम तोला देवत विश्वास
तोर भविष्य बिगड़ नइ पावय, ना कभु तोर फधित्ता होय।
जिये अभी तक जइसन जिनगी, ओकर ले स्तर हा ऊंच
तोर पुत्र मनबोध के सब हक, दूसर असन सुरक्षित जान।”
धनवा के अन धन जतका अस, होगे जमा गांव अधिकार
धनवा ला समझा के रेंगिन, बइठिन नइ मेड़्री ला मार।
मनखे मन उन्नति बर भिड़गें, तिरिया मरद करत हें काम
एकोकन कसरहिल मरत नइ, सबझन हर्षित खुशी मनात।
जतका ठक हे टेपरी डोली, ते मत्थम बहरा बन गीस
फूट जाय मुड़ मेड़ के कारन, पर अब रुकगे झगरा रार।
ट्रेक्टर गाड़ा कई ठक फांदे, भर भर पथरा मुरमी लात
ठंवठंव पटक चलावत धुम्मस, मुख्य सड़क अस गली बनात।
जे डोली हा जल बिन सुक्खा, होय सिंचइ कहि होत प्रबंध
जेन जगह मं रहय अंधेरा, उहां रगाबग होत प्रकाश।
सुन्तापुर के प्रगति हा होवय – मनखे सुंट बंध जोंगत काम
इंकर शक्ति ला जांचे खातिर, बेर तिपत कंस गड़िया खाम।
टिरटिर घाम फजर मं कहलत, भोंभरा तिपत लकालक झांझ
मृगतृष्णा जल बहत मंझनिया, लू के कारन व्याकुल सांझ।
थपथपाय मुड़ गोड़ पछीना, छिनछिन मं लग जावत प्यास
अबड़ दंद कपड़ा नइ भावत, गर्मी ऋतु हा करत हताश।
उठत भनन भन धुंका बंड़ोरा, धर के कागज कचरा धूल
उमठत रात नींद तंह छटपट, भुसड़ी चुटचुट चाब जगात।
दावाअगिन लगे जंगल भर, बांस घांस लकड़ी बर जात
वन्यजीव डर भड़भड़ भागत, आय उंकर बर दुख के टेम।
हगरू हा खपरा ला छावत, ओला धरथय खरीेअजार
कोथा फूलत देवत पीरा, तन फूलत जस कोंहड़ानार।
बुतकू ओकर हालत देखिस, मदद करे बर खब ले अैरस
अउ कतको झन दउड़त पहुंचिन, काबर के नइ कुछ मिनमेख।
बला चिकित्सक ला करवाथंय – ओकर बने दवाई।
हगरू उत्तम औषधि पाथय – रोग हा भागिस पल्ला।
हगरू हा बुतकू ला बोलिस -”मंय कहना चाहत सच गोठ
जेन व्यवस्था हम लाये हन, ओकर पाय सुखद परिणाम।
पहिली असन व्यवस्था होतिस, मानव के रिपु पूंजीवाद
तब मरहा बर कोन हा करतिस – रुपिया दवइ समय बर्बाद!
सुम्मत राज हवय जनपोषक, मोला सत्य रुप अब भान
एकर थरहा जामे जग भर, सब झन पावंय सम सम्मान।”
बुतकू हा तरिया तन जावत, गरमी उखम करे बर शांत
ओकर संग मेहरूमिल जाथय, दूनों रेंगत हंस गोठियात।
अपन डेरौठी धनवा मिलथय, जेहर बइठे धर के गाल
ओहर चिंता मं चूरत हे, भूले हे बाहिर के दृष्य।
मेहरू मन तरिया मं पहुंचिन, बुतकू कहिथय हेरत मैल –
“धनवा काबर हुंकय भुंकय नइ, जस रेंगय नइ जब्दा माल।
पहिली एकर राज चलय तब, पड़र पड़र मारय आदेश
दानी उपकारी पालक अस, करय दिखावा कई ठन ढोंग।
ओ मनखे ला अब का होगे, खुद विचार के अंदर खोय
हम्मन ला टकटक ले देखिस, लेकिन नइ हेरिस कुछ गोठ?”
मेहरू हा उत्तर ला देवत -”राज करिस जेकर आदेश
जेहर बाघ असन गुर्राये, खुद ला समझय पर ले ऊंच।
मगर व्यवस्था हा बदलिस तब, दूसर अक ओकर अधिकार
सामन्जस्य स्थापन मुश्किल, तब चिंतित बइठे गुम खाय।
ओकर घांस जहां मर जाहय, जीवन यापन अन्य समान
पहिली के हालत ला हंसही, वर्तमान के करही मान।”
दतुवन के चीरी ला बीनिन, साफ करिन आगी मेंे लेस
करिन साफ बहबिरित घंठोधा, जस साबुन मं धुलथय देंह।
फिर दूनों झन रगड़ नहाइन, घर तन लहुटिन तरिया छोड़
धनवा बइठे अब ले ओ तिर, अपन पुत्र मनबोध ला पाय।