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गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 10 / नूतन प्रसाद शर्मा

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कातिक कहिथय -“”सब जानत हव – मंय हा तिजऊ के अंव औलाद
धनवा मन के काम ला करके, मोर बाप गिस मरघट घाट।
अब मंय धनवा के नौकर अंव, यहू तथ्य तुमला हे ज्ञात
याने पीढ़ी दर पीढ़ी हम, धनवा के पूजत हन लात।
लेकिन उन्नति हमर होत नइ, दिन दिन भटत – होत बर्बाद
हमर बेवस्ता हा पहिलिच अस, कब तक चलन गरीबी लाद?”
टहलू कथय -“”मोर ला सुन लव, धनवा – हमर मं अड़बड़ फर्क
ओहर स्वर्ग – राज ला भोगत, अउ हम भोगत दुख के नर्क।
धनवा रहिथय महल अटारी, हमर पास बस फुटे मकान
धनवा खाथय खीर सोंहारी, हम हा पेज घलो नई पान।”
बउदा कथय -“”जमों मिल हेरव अइसन सुघर तरीका।
होय भविष्य उजागर – हालत हा झन होवय फीका।
धनवा हा बढ़ाय मजदूरी, ताकि निफिक्र अन्न हम खान
कपड़ा पहिरे बर झन तरसन, होय हमर बर बसे मकान।
अगर मांग ला धनवा मानत, काम बजाबो उठा कुदाल
यदि इंकार करत धनवा हा, हम नइ खतम करन हड़ताल।
जे प्रस्ताव अभी भाखे हन, ओकर परिणति होवय काम
मुंह के थूंक मं बरा चुरय नइ – ना रेमट मं मीठ गुराम।”
होत संगठित जमों श्रमिक मन, इनकर गोठ सुखी सुन लीस
ओहर हंफरत धनवा तिर गिस, जतका बात सुना दिस साफ।
कहिथय -“”कते जगत मं रहिथस, मोर डहर दे थोरिक कान –
चिखला माटी संग जे लड़थय, उही असल मं आय किसान।
जतका अस कमाय के ताकत, ओतका धरती ओकर आय
जेकर तिर सक – बाहिर धरती, देश के दुश्मन ओहर आय।
मेड़ मं बइठ कराथय खेती, कुब्बल अक धर के बनिहार
ओहर ना किसान – ना पोषक, वास्तव मं शोषक गद्दार।”
अतका बोल सुखी अउ बोलिस -“”मंय बताय हंव ऊपर जेन
ओला तोर भृत्य मन बोलत, कृषक के परिभाषा ओरियात।
अपन मांग ला झटके खातिर, नौकर तोर करत हड़ताल
उनकर धुमड़ा ला खेदे बर, बने सोच के राह निकाल।”
धनवा हंसिस -“”मौत जब आथय, छानी पर कुक्कर चढ़ जात
नौकर इतरावत तिनकर पर, मंय करिहंव बम के बरसात।
छेरकू मंत्री तिर पठोय हंव, इहां आय बर खबर अनेक
मोर समस्या उही खेदिहय, उही एक झन रक्षक मोर।
जब छेरकू चुनाव ला लड़थय, धर पसिया मंय करत प्रचार
ओकर सिरी गिरय झन कहि के, अपन पुंजी तक करथंव ख्बार।
एन बखत मंय मदद ला देथंव, तब छेरकू पर हे विश्वास
मोर बनउकी उहू बनाहय, होन देय नइ कभू निराश। ”
मेचका हा बरसा सोरियाथय, धनवा हा छेरकू के याद
वास्तव मं छेरकू आ धमकिस, मरत धानबर बरसा – खाद।
छेरकू किहिस – “”हताश होव झन, काबर फिकर मं तंय बिपताय!
तोर बिपत के टंटा टुटिहय, झख मारे बर मंय नइ आय।
अगर तोर खमिहा हा उखनत, बोहा जहंव मंय धारो धार
जइसे नास बिना नांगर हा, धथुवा बइठ जथय मन मार।”
छेरकू हा फिर सुखी ला नेमिस -“” जमों श्रमिक ला धर के लान
ओमन ला अइसे झुझकाबे – अब नइ खावव दुख के बाण।
छेरकू चाहत तुम्हर दर्शन, आय कठिन मं समय निकाल
जतका दुख पीरा सब खोलव, छेरकू लेहय बिपत सम्हाल।
तुम्हर भविष्य बनाये खातिर, शासन हा निकाल दिस राह
अइसन जिनिस ला फोकट बांटत, जेमां तुम पाहव सुख – छांय।”
पोखन केजा बउदा हगरु, झड़ी भुखू डकहर मन अैिन
टहलू कातिक साथ बोधनी, फूलबती तक संग मं अैिस।
गल मं गुंथे गेंगरूवा रवाथय, तब मछरी के जीवन नाश
नौंकर संग ग्रामीण पहुंच गिन, छेरकू अउ धनवा के पास।
छेरकू किहिस – “”गोहार ला सुन लव, आय हवंव जे करे हियाव
धर्म के काम कराय चहत मंय, छेंक देव यदि कुछ अन्याय।
मंय हा धनवा ला गोहरावत – तंय हा बनवा मंदिर एक
यदि भगवान ला पधरावत हस, धरमी कहिहंय – काम हे नेक।
जिंहा रहय नइ मंदिर देवा, मरघट असन लगत हे गांव
नंदा जथय लक्ष्मी इमान हा, धुंकी बंड़ोेरा करथय रवांव।
ईश्वर – पूजा जिंहा होत नित, लाहो नइ ले मरी मसान
पुछी उठा – सब विघ्न भगाथय, काबर के छाहित भगवान।”
धनवा कथय -“”कसम बइठक के, तुम्हर गोठ नइ सकंव उदेल
धर्म – काम मं सब तियार तब, जाहंव कहां एक झन पेल!
शासन खुशियाली के होवय, हमर गांव बाढ़य दिन रात
दुख ला हरंय देवता धामी, ओमन कभु झन छोड़य साथ।”
केजा हा धनवा ला बोलिस -“”करत हवस जब नेकी।
तब काबर पुच पुच करथस – कूटत शंका के ढेंकी।
देबो मदद अपन ताकत भर, हमरो सुधर जाय परलोक
धर्म के झण्डा ला उचाय हस, बरगलांय तब ले झन रोक।”
छेरकू समय अमर के बोलिस -“”मगर समस्या आवत एक
धनवा के नौकर मन कर दिन, मजदूरी बढ़ाय बर टेक।
जब ओमन मिहनत ले भगिहंय, उठे काम मं परिहय आड़
जइसे सनसन बढ़त धान ला, चरपट करत हे गंगई कीट।
अगर श्रमिक के मांग ला मानत, ओमन सब धन लेहंय लूट
तब धनवा हा कहां ले करही, मंदिर ला बनाय बर खर्च?
एकर बर तुम राह निकालव – पूर्ण होय ईश्वर के काम
कष्ट प्राकृतिक कभू आय झन, होय सुरक्षित गांव तुम्हार। ”
भुखू जउन धनवा के कोतल, समझगे छेरकू के छल छिद्र
कथय “”सुनव धनवा के नौकर, काबर तुम फुलोय हव गाल!