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गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 17 / नूतन प्रसाद शर्मा

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अपन बीच हम द्धेष रखन नइ, अब सुधारबो खेत के हाल
गांव मं रहिबो सग भाई अस, उन्नति बर देबो सहयोग।”
भांवत कथय – “क्षमा मांगत हंव, हम रखबो एका सदभाव
मिहनत करके बासी खाबो, आलस ला देवत हन त्याग।”
कथय गरीबा – “हम नइ मानन, आत्मग्लानि अउ पश्चाताप
तुमला अवसर एक देत हन, जेमां चलव एक अस राह।”
चिंता बोलिस – “पहुंच गरीबा कर दिस आज भलाई।
भाई मन ला एक बना दिस हम ओकर आभारी।
मानकुंवर हा दीस हुंकारु- “अगर इहां आतिस धनसाय
ओहर न्याय ला घुमवा देतिस, तंह शत्रुता हा बढ़तिस जोर।
बेंदरा अस बांटा ला बांटतिस, माल उड़ाय के धरतिस पांत
दुनों कोत ले मुंहचलका धर, सुन्तापुर चलतिस मुसकात।”
धरे गरीबा नोट तउन ला, दुनों बन्धु ला लहुटा दीस
बोलिस -”गलत सलाह सुनव झन, अपन हाथ टोरव झन फांस।
कहना मोर अगर जम जाए, करव आज ले अइसन काम-
ओ मनखे ले दूर रहव तुम, जे उभरावय बन के राम।”
उहां हवंय जतका झन मनसे, करत गरीबा के तारीफ
पर दसरुगंभीर अभी तक, रखे बुद्धि ला स्थिर भाव।
दसरुकिहिस -”न्याय अभि होइस, तेकर फल भविष्य मं मीठ
पर अपराध होय तेकर तन, एको व्यक्ति देव तो ध्यान!
जे नियैक हा नेक न्याय दिस, ओहर पात प्रशंसा – सोर
पर ओहर अपराध करिस हे, तेकर बर का देवत दण्ड?”
उहां के भीड़ परिस अचरज मं, समझत नइ दसरुके अर्थ
बांके हा नोखिया के पूछिस -”तोर बात हा समझ ले दूर।
अैंस गरीबा सुन्तापुर ले, ठोस न्याय कर कर दिस एक
पर ओहर अपराध का कर दिस, तिंही बता सब भेद ला खोल?”
तुरुत गरीबा आशय समझिस, ओकर मुंह करिया के लुवाठ
जमों दोष ओकरेच आवय कहि, अंदर हृदय सहत संताप।
मनसे मन ला कथय गरीबा -”दसरुरखिस तेन सच गोठ
मंय निश्चय अपराथ करे हंव, अंत&करण करत स्वीकार।
मनसे के हर कष्ट हरे बर, ओकर स्वार्थ सुरक्षित होय
मूक जीव के बलि देवत हन, उनकर प्राण हरत बन क्रूर।
सांवत भांवत एक सुंटी बंध, खाहंय पिहंय लिहीं आनंद
कुकुर बिलई के जान निकल गिस, जेहर कभू लहुट नइ आय।
यदि मनुष्य के हत्या होतिस, मिलतिस आजीवन कारावास
पर पशु के मंय प्राण हरे हंव, एमां सजा मिलत हे काय?
याने हम्मन स्वार्थ पूर्ति बर, मारत हन पशु पक्षी पेड़
प्रकृति के सन्तुलन हा बिगड़त, जेहर आय महा अपराध।
वास्तव मं मंय जुरूम करे हंव, ओकर फल मं मांगत दण्ड
चार पंच मिल न्याय करव अब, मंय हा कहत क्रोध ला त्याग।”
चिंता बोलिस – “हम टोटकोर्राे, तोला कहां करन हम माफ!
दण्ड घलो हम कहां ले देवन, भावी बर निर्णय रख देव।
हम अतका सलाह दे सकथन – कुकुर बिलई के “गत’ बन जाय
ओमन बिन कसूर मारे गिन, ओमन ला अब “माटी’ देव।”
गुनत गरीबा मन के अंदर – अब मंय करिहंव कोई काम
काम के पूर्व समीक्षा चिंतन, अउ फल – ऊपर गहन धियान।
पर के नेक सलाह ला सुन लंव, खुद ला श्रेष्ठ समझना बंद
दुश्मन के सदगुण अपनाहंव, तभे सफलता आहय हाथ।”
सब मनखे के साथ गरीबा, कुकुर बिलई के “क्रिया’ बनात
उन ला “माटी’ दिस माटी रख, ओमन दुनों स्नेह के पात्र।
सब रटघा ला टोर गरीबा, लहुट गीस सुन्तापुर गांव
तभे उहां आरक्षक आइस, ओकर रिहिस हे भोला नाम।
ओला जब मनसे मन देखिन, ओ तिर ले छंट के चल दीन
बस बांके हा अंड़े उहां पर, ओहर रिहिस निघरघट जीव।
भोला हा बांके ला बोलिस -”मंय हा बहुत सरल इंसान
कोई ला दमकाये नइ हंव, एको ला लगाय नइ डांट।
तब ले मनसे मोला देखिन भरभर भागिन पल्ला।
आखिर मोर काय ए गल्ती फुरिया तुरते ताही।
बांके किहिस -”हटिन मनसे मन, ओमां उंकर कुछुच नइ दोष
हे गणवेश तुम्हर खुद अइसे, एला देख डरत हे लोग।”
“हम्मन जनता के रक्षक अन, रक्षा करथन खुद ला होम
दंगा लड़ई अगर कुछ होवत, हम्मन जाथन ओतिर दौंड़।
बिगड़े हालत ला सुधारथन, खुद दुख भोग कराथन शांत
तभो ले मनसे यदि डर्रावत, तब तो आय बहुत बेकार।”
“यद्यपि कतको ठक विभाग अउ, मगर भिन्न हे तुम्हर विभाग
तुम कई ठक अधिकार पाय हव, तेकर कारन तुम हव ऊंच।
कोई ला मुजरिम बनात हव, धारा लगा देत निर्बाध
तुम्हर पिछू न्यायालय चलथय, तुम्हर लेख के करथय जांच।
तुम मुजरिम ला छोड़ सकत हव, सुधुवा ला सकथव तुम धांस
खैर छोड़ बारागण्डाएन, कहां जात तेला कहि देव?”
“बन्दबोड़ मं भेखदास हे, ओला देना हे सम्मंंस
बन्दबोड़ के पथ नइ जानंव, तंय हा बता सरल अस राह?”
“हम हा इहां जउन ठाढ़े हन, एहर नवा करेला आय
इहां ले जावव जुन्ना करेला, ओकर बाद एक ठक बांध।
ओकर तिर ले होवत निकलव, आगू मं हे बर के पेड़
ओकर असलग जउन गांव हे, ओला “बन्दबोड़’ तंय जान।”
भोला आगू डहर सरक गिस, बन्दबोड़ पहुंचिस कुछ बाद
ओहर बुलुवा ला बलवाथय, जेहर आय गांव कोतवाल।
पल्टन भेखदास अउ बल्ला, मालिक जगनिक तक आ गीन
“आरक्षक हा काबर धमकिस! अइसे सोच भीड़ बढ़ गीस।