भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 18 / नूतन प्रसाद शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोला ला पल्टन ला पूछिस – “भेखदास के का अपराध
तंय ओकर विरूद्ध लिखवाये, थाना पहुंच के ओकर नाम?”
पल्टन किहिस -”मोर सच सुन लव – रिहिस मोर तिर कुकरा एक
ओला भेखदास हा लेगिस, बिगर बताय कलेचुप चोर।
कुकरा ला लहुटा देवय कहि, मंय ओला समझउती देंव
लेकिन ओहर घेक्खर मनसे, मोर बात ला मारिस लात।
आखिर मंय हा हार गेंव तंह, थाना गेंव प्राथमिकी लिखाय
भेखदास हा कुकरा लेगिस, सब आरोप उहां कहि देंव।”
आरक्षक के बरनी चढ़थय, भेखदास ला पास बलैस
भड़किस -”तंय गरूवा अस दिखथस, नीयत के लगथस दस साफ।
कुकरा खाय लार यदि टपकत, तंय ला सकते एक खरीद
लेकिन तंय नीयत के छोटे, कुकरा के चोरी कर लेस।”
भेखदास इन्कार दीस खब -”सत्य कहत – मंय हा नइ चोर
पल्टन आय पुराना दुश्मन, मोला धांसत रच षड़यंत्र।
मंय निर्दाेष साफ पानी अस, गलत काम ले रहिथंव दूर
मोर भेद “बन्छोर’ जानथय, जेहर सबके रक्षक देव।”
लेकिन भोला बात सुनिस नइ, कहिथय -”तंय बोलत हस झूठ
पल्टन हा पगला नइ जेहर, डारत हवय तोर पर दोष।
ठंउका मं तंय हा चोरहा हस, मोर साथ चल थाना रेंग
समझउती ला काट देत हस, तंय हा बंड निसाखिल जीव।”
भेखदास हा बिछल गीस फट -”मंय नइ करेंव जुरूम के काम
तब मंय काबर थाना जाहंव, उहां मोर नइ थोरको काम।
तंय शासन के आरक्षक अस, एकर मतलब ए नइ होय –
तंय कोई ला दपकी मारस, या थाना लेगस धर बांध।”
भेखदास के ओरझटी सुन, भोला के तन लग गिस आग
ओहर भेखदास ला दोंगरत, कोदई ला परथे मूसर मार।
मनसे मन टकटक ले देखत, उंकर हृदय मं ब्यापत सोग
पर डर मं खुद थरथर कांपत, नइ कर पावत बीच बचाव।
भेखदास ला भोला बोलिस -”सच मं तंय चोरी कर लेस
मोर साथ उठमिलवई करथस, काटेस शासन के आदेश।
तंय हस खतरनाक अपराधी, पर तंय होना चहत अजाद
मोर चई मं तंय ना रूपिया, तब मंय तोला करिहंव माफ।
यदि तंय ओरझटी कुछ करबे, थाना लेग जहंव तब झींक
उहां तोर बुढ़ना झर्राहंव, टोर के रहिहंव नसना तोर।”
भेखदास ला मार परे हे, पश्त होत हे ओकर देह
ओहर जगनिक के तिर पहुंचिस, अपन व्यथा ला खोलिस साफ –
“तंय हा सत इमान जानत हस – मंय हा अंव बिल्कुल निर्दाेष
पर पल्टन हा दोष लगा दिस, थाना चल दिस मोर खिलाफ।
आरक्षक हा मोला झड़कत, करत हवय रूपिया के मांग
मंय हा चोरी कहां करे हंव, तब ले सजा मिलत भरपूर।”
जगनिक कथय -”सलाह देत हंव – यदि आरक्षक मांगत नोट
ओकर हाथ राख दे रूपिया, पाछू डहर गोड़ झन लेग।
यदि तंय नहि मं मुड़ी हलाबे, तब तोरेच होहय नुकसान
क्रूर व्यक्ति ले साफ बचे बर, ओकर गलत मांग ला मान।”
भेखदास हा कथय निहू बन -”तंय हा देवत नेक सलाह
मगर मोर तिर रूपिया नइये, मंय हा अभी विवश लाचार।
अगर तोर कर नगदी रुपिया, मोर मदद कर दे तत्काल
तंय मनमरजी ब्याज लगाबे, मंय हा देहंव बिन इन्कार।”
जगनिक हा रूपिया गिन दिस तंह, भेखदास के बनगे काम
ओहर आरक्षक तिर पहुंचिस, रुपिया रख दिस ओकर हाथ।
बल्ला हा ओकर ले हटथय, पहुंच गीस घुरूवा के पास
भेखदास के ददा ए ओहर, तेकर पास कहत सब बात –
“तंय निÏश्चत असन बइठे हस, भेखदास के हाल खराब
ओला आरक्षक हा कुचरत, ऊपर ले मांगत हे नोट।”
घुरुवा हा अचरज मं परथय -”मोर पुत्र के काय हे दोष
आरक्षक हा काबर पीटत, कुछ तो बता – बात ला साफ।?”
“तोर पुत्र कुकरा चोराय हे, पल्टन मढ़त हवय आरोप
इही सूचना ला अमरे बर, भोला आरक्षक हा आय।
ओहर हा कत्र्तव्य छोड़ दिस, करत निसाखिल अत्याचार
ओला कोई छेंक सकत नइ, पुलिस के डर तो होथय खूब।”
घुरुवा घटनास्थल पर गिस, ओकर रुंवा हा होथय ठाढ़
आरक्षक भोला हा मिलथय, करथय बरन चढ़ा के बात –
“ठंउका मं अन्याव करे हस, भेखदास बिल्कुल निर्दाेष
ओला झड़क के मांगे रुपिया, फोकट के बताय हस रोष।
तुम सम्मन्स इहां देतेव चुप – वापिस जातेव भाई।
शासन के बूता हा पूरा – नइ उठतीस झमेला।
पर न्यायालय ला लगाय हव, जबकि तोर अधिकार ले दूर
शासन ले हक पाय हवस का, गांव पहुंच कर अत्याचार!
तंय अभि गल्ती जेन करे हस, ओकर करिहंव अवस रपोर्ट
यदि थाना हा दुरछुर करिहय, पर मंय हा निराश नइ होंव।
उहां के हट न्यायालय जाहंव, करिहंव प्रकरण दर्ज तड़ाक
मगर तोर धुमड़ा खेदे बर, मंय हा पागी कंस तैयार।”
अतका अकन बोल घुरुवा हा, थाना चलत रिपोर्ट लिखाय
ओहर सुन्तापुर पहुंचिस अउ, सब तिर अपन बिपत ओरियात।
उही तीर मं बात सुनत हें, बिरसिंग मगन साथ बिसनाथ
ततके मं भोला हा पहुंचिस, फिकर मं सिकुड़त ओकर माथ।
कहिथय -”देखव तो घुरुवा ला, थाना जावत मोर खिलाफ
एला रोक के समझा देवव, मोर कुजानिक कर दे माफ।”
कहिथय मगन -”मंगे हस रिश्वत, भेखदास ला थप्पड़ देस
तंय अनियाव करे हस नंगत, पर अब काबर घुसरत टेस!”