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गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 3 / नूतन प्रसाद शर्मा

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लकड़ी रच के चिता बना दिन, फिर रख दिन सोनू के लाश
धनवा किंजर करत परकम्मा, लेवत फुस फुस दुख के सांस।
चिता के आगी धकधक बरगे, तब धनसाय दीस मुंह दाग
आंसू गिरा के रोवत धड़धड़ -“”ददा, मोर अब फुट गे भाग।
तंय मोला छोड़त तब करिहय मोर कोन रखवारी।
छल प्रपंच नइ जानंव कइसे कटिहय विपदा भारी।
डकहर किहिस -“”शांत रह धनवा, वाकई आय तोर पर कष्ट
लेकिन मन ला सम्बोधन कर, तभे हमर दुख होहय नष्ट।
सोनू मण्डल भला आदमी, सिरिफ तोर नइ रिहिस सियान
ओहर सब अतराप के पुरखा, मनसे मन हा पुत्र समान।”
केजा घलो सांत्वना देइस -“”जग मं होथय कई इंसान
मगर कर्म के अंतर कारण, यश मिलथय – होथय बदनाम।
पर उपकारी तोर ददा हा, करिस जियत भर भल के काम
तभो ले कतको जलकुकड़ा मन, मुंह पाछू कर दिन बदनाम।
जेन व्यक्ति हा दुश्मनी जोंगिस, सोनू मदद करिस हर टेम
सबके खातिर हृदय साफ झक, नइ जानिस कुछ छल या झूठ।”
मनखे मन मुंह देखी बोलत, काबर के धनवा धनवान
यदि ध्रुव असन सत्य बोलत हें, धनवा हा लेहय प्रतिशोध।
सोनू रिहिस लुटेरा घालुक, ए रहस्य जानत अतराप
कोन घेपतिस मनसे ला पर – पूंजी के भय करथय खांव।
शासन निहू हे धन के आगू, ए बपुरा मन हवंय अनाथ
सोनू के मरना ले खुश हें, बाहिर मन से देवत साथ।
सिरिफ गरीबा हे दुसरा तन, एको झन नइ ओकर पास
खंचुवा कोड़िस मात्र अपन भिड़, पर कइसे दफनावय लाश!
मदद मंगे बर गीस दुसर बल, करूण शब्द मं हेरिस बोल –
“”अब दर मं शव ला रखना हे, लेकिन होवत मंय बस एक।
अंड़े काम पूरा करना हे, दे के मदद करा दव पूर्ण
मोर ददा हा साऊ अदमी, थिरबहा लागे ओकर लाश।”
टपले सुखी बात ला काटिस -“”तोर शर्म कतिहां चल दीस –
“”सोनसाय के जीव का छूटिस, तंय बिजराये बर धमकेस।
टेम सुघर अक आय तोर बर, मिलगे मुफ्त गांव के राज
अपन थोथना इहां ले टरिया, खुद सम्हाल मरनी के काम।”
भुखू कथय -“”तंय हा जानत हस – हम्मन अभी दुखी गमगीन
जब गंभीर बखत हा होवय, कभू भूल झन होय मजाक।
जेन कार्यक्रम एती होवत, ओला छोड़ अन्य नइ जान
तंय हा अपन काम कर पूरा, हमर आसरा बिल्कुल छोड़।”
गंगा हा जब बहत छलाछल, कोई भी धोवत हे हाथ
जमों गरीबा ला दंदरावत, टहलू तक हा मारत डांट –
“”अतका बखत ले खरथरिहा अस, करत रेहेस उदिम बस एक
काम अधूरा तब दउड़े हस, चल अब पुरो अपन सब काम।”
हटिस गरीबा हा काबर के – हिनहर के नइ हितू गरीब
भंइसा बैर छत्तीस गिनती अस, तलगस ले सुर्हराहय जीब।
जब असहाय होय मानव हा, खुद हा करय लक्ष्य ला पूर्ण
खात गरीबा कहां हार अब, देत परीक्षा होय उत्तीर्ण।
यथा ढेखरा खर खर तीरत, लाश ला लानिस दर के तीर
एकर काम देख के हांसत, दूसर तन के मानव – भीड़।
अपन बहा मं खने जेन दर, उही मं घुस के झींकत लाश
अपन ददा ला भितर सुता के, होत गरीबा दुखी उदास।
बाहिर निकल पलावत माटी, धांसत पथरा मं बड़ जोर
दुसर डहर के मनसे मन अब, चलिन उहां के रटघा टोर।
धनसहाय के घर तिर पहुंचिन, धोइन एक – एक कर गोड़
एकर बाद अपन घर जाये, उहां ले रेंगिन मुँह ला मोड़।
शाम के अउ बैठक जुरियाइस, धनवा बोलिस दुखी अवाज –
“”मंय असहाय अनाथ होय हंव, मोला परिस बज्र के मार।
अड़बड़ जहरित रिहिस बाप हा, कुब्बल उदगरे ओकर काम
ओकर आत्मा पाय शांति सुख, एकर बर मंय करंव उपाय।
लेकिन कते काम ला जोंगव, मोर दिमाग उमंझ नइ आत
नेक सलाह देव तुम मिल जुल, सुलिन लगा के होवय काम।”
सुखी कथय -“”तंय राज ला करबे, अपन बाप के धन में।
ओकर आत्मा शांत होय, तइसे कारज धर मन में।
मंय उत्तम सलाह देवत हंव – तंय खवाय “भंडारा’ खोल
मनसे जहां कलेवा खाहंय, तृप्ति अमर गाहंय जस तोर।
मृतक के आत्मा तुष्ट हो जाहय, भटकत आत्मा तक हा शांत
यद्यपि होवत नंगत खरचा, पर होवत हे सद उपयोग।”
बन्जू कथय -“”असामी अस तयं, भरे बोजाय चीज घर तोर
तब हम तोला उम्हयावत हन – तंय हा निश्चय कर परमार्थ।”
यद्यपि हगरुहा खुद कंगला, पर असहाय के छोड़त साथ
करत गरीबा के जड़ खोदी, ताकि स्वयं उठ जावय ऊंच –
“”अन्न खाय नइ पाय गरीबा, कंगला हाथ कहां जस – काम
करत अधर्म पुत्र पापी हा, पर सुद्धू हा गिरिहय नर्क।”
धनसहाय स्वीकार लीस सब -“”मंय मानत हंव तुम्हर सलाह
मंय भण्डारा खोल के रहिहंव, खाय पेट भर सब अतराप।
मगर कार्यक्रम हे बड़ भारी, सफल बनान सकंव नइ एक
एकर बर तुम देव आसरा, मंय हा चहत तुम्हर सहयोग।”
डकहर बोलिस -“”तंय निफिक्र रहि, गिरन देन नइ इज्जत तोर
अगर कार्यक्रम मं कुछ गल्ती, हम सब मनखे तक बदनाम।
दस झन के लकड़ी के बोझा, एक के मुड़ पर कभु नइ जाय
तोर काम ला सफल बनाबो, तोर बोझ हा हमरो बोझ।”
बातचीत मं टेम खसक दिस, कब ले खलस रेंग दिस शाम
बइठक उसल गीस तंह रेगिन – मनसे मन हा खुद के धाम।